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प्रेमचंद जयंती: हिंदी साहित्यकार, शिक्षक व विद्यार्थियों ने रखी राय, कहा प्रेमचंद जैसा उनका साहित्य भी कालजयी

प्रेमचंद जयंती: हिंदी साहित्यकार, शिक्षक व विद्यार्थियों ने रखी राय, कहा प्रेमचंद जैसा उनका साहित्य भी कालजयी

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Hindi litterateurs, teachers and students expressed their opinion on Premchand Jayanti

प्रेमचंद जी
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


प्रेमचंद को अपनी लेखनी की वजह से अंग्रेजी हुकूमत में सजा भी भुगतनी पड़ी। नवाब राय के नाम से पहली बार कहानी संग्रह सोज-ए-वतन प्रकाशित हुई, लेकिन वह अंग्रेज हुक्मरां को नागवार गुजरा। उनकी प्रतियां जला दी गईं। यहीं से उन्हें राष्ट्र प्रेम से प्रेरित कहानियां लिखने का जुनून और हो गया। अमृतलाल नागर लिखते हैं कि प्रेमचंद ने हमें स्वाभिमान से लिखना सिखाया। प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में रविवार को अमर उजाला कार्यालय में संवाद कार्यक्रम में शहर के हिंदी के शिक्षकों, साहित्यकारों और विद्यार्थियों ने राय रखी और उन्हें अपने शब्दों से श्रद्धांजलि अर्पित की।

भारत के बड़े साहित्यकार हैं प्रेमचंद

प्रेमचंद हिंदी-उर्दू ही नहीं, बल्कि हिंदुस्तान के बड़े साहित्यकार हैं। प्रेमचंद ने अपने साहित्य के जरिये शोषित-पीड़ित, धर्म, राजनीति, जातिवाद, अंधविश्वास, अंग्रेजों की हुकूमत से मुक्ति की बात कही थी। प्रेमचंद ने उस समय किसानों की समस्याओं को दिखाया, जो आज भी है। आज भी किसानों पर जीप चढ़ा दी जाती है। प्रेमचंद के साहित्य का उद्देश्य था कि जनता जागरूक हो। प्रेमचंद मानते थे कि धर्म का मूलतत्व मनुष्यता है, लेकिन यह मनुष्यता छिन्न-भिन्न हो रही है।-प्रो. आशिक अली, अध्यक्ष हिंदी विभाग, एएमयू

अमर उजाला अलीगढ़ संवाद कार्यक्रम

उत्तरी भारत को समझने के लिए पढ़ें प्रेमचंद का साहित्य

एकतरफ तो हम प्रेमचंद को आदर्शवादी कहते हैं तो दूसरी तरफ उन्हें दलित विरोधी, सनातन विरोधी कहते हैं। दोनों बातें एक साथ कैसे कही जा सकती हैं। आप उत्तरी भारत को ठीक से समझना चाहते हैं तो प्रेमचंद को पढ़िए। कालजयी साहित्य हमेशा प्रासंगिक होता है। यह साहित्यकार का कौशल है। महाभारत, रामायण आज भी प्रासंगिक है। उसी तरह से प्रेमचंद का साहित्य भी प्रासंगिक है। प्रेमचंद ने अपने साहित्य में स्त्री-पुरुष समानता और सामाजिक मुद्दे को रेखांकित किया है। -अजय बिसारिया, हिंदी विभाग, एएमयू

रामचरित मानस और गोदान मांगेंगे

प्रेमचंद हिंदी कथा साहित्य के उन्नायक ही नहीं है, बल्कि स्थापक है। अगर मुझे जेल में डाल दिया जाए और मुझसे कहा जाए कि क्या चाहिए, तो मैं बस दो साहित्य मांगूगा, एक रामचरित मानस और दूसरा प्रेमचंद का गोदान। 100 साल के बाद भी आज प्रेमचंद पर चर्चा हो रही है, यह ही उनके बड़े साहित्यकार होने के लिए साबित करती है। प्रेमचंद के साहित्य में आदर्श न होता तो वह कालजयी न होते। उनका साहित्य सरल और सहज है, जिसे पढ़ने में आनंद आता है। -डॉ. प्रभाकर शर्मा, पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग डीएस कॉलेज

प्रेमचंद की आदर्श वाली कहानी रिझाती हैं सभी को

प्रेमचंद की आदर्श वाली कहानी सभी को रिझाती हैं। प्रेमचंद ने जनमानस में हिंदी के प्रति रुचि रखने वाला पूरा वर्ग विकसित किया। प्रेमचंद रचनाकार होने के साथ, वह समाज के प्रबुद्ध व्यक्ति भी थे। जब प्रेमचंद प्रगतिशील संघ के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने लखनऊ में आयोजित सम्मेलन में कहा थी कि प्रगतिशील शब्द ही निरर्थक है, क्योंकि साहित्यकार हमेशा प्रगतिशील रहता है। वर्ष 1932 के बाद प्रेमचंद के भाषा और रचना में तेवर था। उन्होंने जैनेंद्र से आखिरी वक्त में कहा था कि अब आदर्शवाद से काम नहीं चलेगा। -डॉ. अरुण कुमार सिंह, शिक्षक हिंदी विभाग, एचबी इंटर कॉलेज

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