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प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान हुई एक भीषण लड़ाई हुई थी 23 सितंबर 1918 को इजरायल की मशहूर जगह हाइफा में। जर्मनी, ऑस्ट्रिया और उनकी सहयोगी सेनाओं ने इजरायल के शहर हाइफा पर कब्जा करने की ठान ली थी। लेकिन, हिंदुस्तान के जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद से पहुंचे घुड़सवारों ने ढाल, बरछों और बल्लम के सहारे पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ते हुए न सिर्फ इन आक्रांताओं को मार भगाया बल्कि हाइफा पर हिटलर का कब्जा होने से भी बचा लिया।
आधुनिक इतिहास के सबसे गौरवशाली युद्धों में गिने जाने वाले बैटल ऑफ हाइफा के बारे में बताते हैं कि उस दिन हिंदुस्तानी फौजियों ने दुनिया को अपना मनोबल, रणनीति और कौशल दिखा दिया था। हुआ यूं था कि इजरायल में हाइफा की पहाड़ियों पर स्थित किले पर कब्जा करने जर्मनी, ऑस्ट्रिया और उनकी सहयोगी सेना पहुंच चुकी थीं। सैकड़ों की तादाद में जुटे इन सैनिकों के पास आधुनिक मशीन गन, तोपें और तमाम असलहा बारूद था। उधर, इजराइल की मदद के लिए पहुंची भारतीय टुकड़ी में जोधपुर लांसर्स, मैसूर लांसर्स और हैदराबाद लांसर्स के घुड़सवार फौजियों के पास हथियारों के नाम पर सिर्फ बरछे और भाले ही थे।
इन मुट्ठी भर घुड़सवार फौजियों ने इस व्यूह रचना के साथ पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया कि ऊपर से बरसाई जा रही गोलियों से ये लगातार बचते बचाते ऊपर तक पहुंच गए। अपने भालों और बरछों से इन्होंने तमाम दुश्मनों को मार गिराया और बाकियों को वहां से खदेड़ दिया। हाइफा शहर के सबसे महत्वपूर्ण चौक पर अब भी इन घुड़सवार फौजियों की याद में एक स्मारक बना हुआ। बैटल ऑफ हाइफा की कहानी इजराइल की स्कूलों के पाठ्यक्रमों में भी तभी से शामिल रही है।
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