[ad_1]
कार्यक्रम में चल रही चर्चा के बीच जिक्र अमेरिका में लेखकों की हड़ताल का भी आया और जब जावेद अख्तर से पूछा गया कि हिंदी फिल्मों के लेखकों को अपनी पहचान बनाने के लिए क्या करना चाहिए? उन्होंने कहा, ‘पहले तो हमें न करना सीखना चाहिए। हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिसके लिए हमारा दिल गवारा न करे। लेखक किसी भी फिल्म का आर्किटेक्ट होता है और उसी के बनाए नक्शे पर निर्देशक इमारत खड़ी करता है। तो ये समझने वाली बात है कि लेखक ही किसी फिल्म का पहला रचयिता होता है।’
अपने फिल्मी करियर के शुरुआती दिनों का जिक्र करते हुए जावेद अख्तर ने बताया कि उनकी सलीम खान के साथ लिखी चौथी फिल्म ‘जंजीर’ जब हिट हुई तो उन दोनों ने तय कर लिया कि अब वे अपने हिसाब से ही फिल्में करेंगे। ‘अंदाज’, ‘सीता और गीता’ और ‘हाथी मेरे साथी’ के बाद सलीम-जावेद की लिखी चौथी फिल्म ‘जंजीर’ अपने समय की ब्लॉक बस्टर फिल्म रही है। इसी फिल्म ने अमिताभ बच्चन को सुपरस्टार बनने की तरफ पहला ठोस कदम उठाने की ताकत भी दी।
जावेद अख्तर बताते हैं, ‘फिल्म ‘जंजीर’ के हिट होने के बाद हमें नौ महीने तक कोई काम नहीं मिला। इसी दौरान एक पार्टी में एक निर्माता ने उनसे बात की और ये पता चलने पर कि हमारे पास एक तैयार स्क्रिप्ट है, उन्होंने अगले दिन दफ्तर आने को कहा। मैंने कहानी सुनाने से पहले ही अपनी फीस इसलिए बता दी ताकि निर्माता बाद में ये न कह सकें कि कहानी पसंद आने के चलते मैंने फीस बढ़ा चढ़ाकर बता दी है। जैसे ही मैंने उन्हें अपनी फीस बताई, वह चुप हो गए। लंबे सन्नाटे के बाद उन्होंने घंटी बजाई और दफ्तर के एक कर्मचारी से अपने पार्टनर को बुलाने को कहा।’
[ad_2]
Source link