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अपने जमाने के दिग्गज अभिनेता जगदीप के पोते और जावेद जाफरी के बेटे मीजान जाफरी खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि करियर की शुरुआत से लेकर हिंदी सिनेमा के बड़े निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिला। आहिस्ता आहिस्ता सधे कदम अपनी अभिनय यात्रा को जारी रखते हुए मीजान अपने दादा और अपने पिता जावेद जाफरी से मिले सबक हर मोड़ पर याद रखते हैं। उनके सामने दो दिग्गजों की विरासत संभालने की जिम्मेदारी है और चुनौती इस बात की है कि वह इन दोनों से अलग पहचान कैसे बना पाते हैं। मीजान से एक खास बातचीत।
शुरुआत आपके दादा जगदीप से करते हैं, उनको याद करते हैं तो उनका कौन सा किरदार तुरंत जेहन में घूम जाता है?
‘हमारा नाम सूरमा भोपाली ऐसे ही नही है’, तो है ही। प्रियदर्शन की एक फिल्म ‘मुस्कुराहट’ आई थी जिसमें दादा जी और अमरीश पुरी जी थे। यह फिल्म प्रियदर्शन सर की पहली हिंदी फिल्म थी। इस फिल्म का एक-एक सीन मुझे बहुत पसंद है। फिल्म में उनका डायलॉग और किरदार मुझे बहुत अच्छा लगा था। वैसे तो ‘अंदाज अपना अपना’, ‘कालिया’, जैसी बहुत सारी फिल्में हैं। हर फिल्म में उन्होंने एक अनोखा किरदार पेश किया है। दादा जी को लेकर किसी एक का चुनाव करना बहुत मुश्किल हो जाता हैं।
पिता जावेद जाफरी की कौन सी फिल्म सबसे पहले देखी आपने?
डैडी की पहली फिल्म ‘मेरी जंग’ थी। इस फिल्म में उनका डांस और किरदार मुझे बहुत पसंद आया। सुभाष जी (सुभाष घई) ने डैडी के किरदार को बहुत ही खूबसूरती से पेश किया था। इस फिल्म में डैडी ने जो डांस किया था, उससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली थी। इस फिल्म का गीत ‘जिंदगी हर कदम’ अपने आप में जबर्दस्त हिट सांग है। डैडी पर फिल्माया गीत ‘बोल बेबी बोल रॉक-एन-रोल’ भी मेरा सबसे पसंदीदा गाना हैं। इसमें डांस का एक अलग ही स्टाइल देखने को मिला था। इस गीत को डैडी ने भी किशोर कुमार के साथ गाया था।
रियल लाइफ में भी कभी अपने डैडी को डांस करते देखा है?
कई बार! बचपन में उनके शोज में जाया करते थे। इसके अलावा हमारा कोई पारिवारिक कार्यक्रम होता था तो डैडी डांस करते थे। उनके डांस से प्रभावित होकर मैं अपने डांस में जान डालने की कोशिश कर रहा हूं। मेरी कोशिश यही रहती है कि डैडी की तरह कुछ अलग डांस करने की कोशिश करूं।
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जब आप दादा जी के साथ बैठते थे तो किस तरह की बातें होती थी?
हमारी फिल्मों से ज्यादा इंसानियत पर बातें होती थी। दादा जी अपने अनुभव बताते थे कि किस तरह उनके जमाने में लोगों के अंदर इंसानियत थी और लोग एक दूसरे की मदद करते थे। आजकल तो ऐसा कम ही देखने को मिलता है। दादा जी सिखाते थे कि कैसे अपने आपको एक अच्छा इंसान बनाना है। सामने वाले को बराबरी का दर्जा देते हुए उसके साथ अच्छे से पेश आओ। उनका कहना था कि आप एक्टर तो रहोगे ही, लेकिन एक अच्छा इंसान बनना बहुत जरूरी है। दादा जी सिर्फ परिवार के साथ ही वक्त बिताना पसंद करते थे।
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