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मणिपुर हिंसा: ‘हम जनता की अदालत हैं, सुनवाई उपचार प्रक्रिया का हिस्सा’, जानें सुप्रीम कोर्ट ने और क्या कहा

मणिपुर हिंसा: ‘हम जनता की अदालत हैं, सुनवाई उपचार प्रक्रिया का हिस्सा’, जानें सुप्रीम कोर्ट ने और क्या कहा

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Manipur violence: Giving hearing part of healing process; we are a people's court, says SC

Supreme Court
– फोटो : ANI

विस्तार


उच्चतम न्यायालय ने हिंसा प्रभावित मणिपुर में बार के सदस्यों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि राज्य में किसी भी वकील को अदालती कार्यवाही में जाने से नहीं रोका जाए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हम जनता की अदालत हैं, और इन मामलों में सुनवाई होने देना उपचार प्रक्रिया का हिस्सा है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मणिपुर राज्य वहां उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से यह सुनिश्चित करेगा कि राज्य के सभी नौ न्यायिक जिलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं स्थापित की जाएं ताकि डिजिटल माध्यम से उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने के इच्छुक वकील या वादी अदालत को संबोधित किया जा सके।

पीठ ने यह निर्देश तब दिया जब यह आरोप लगाया गया है कि एक विशेष समुदाय के वकीलों को वहां उच्च न्यायालय में पेश होने की अनुमति नहीं दी गई। शीर्ष अदालत ने इस मामले में पेश हुए वकीलों से कहा कि वे अदालत में प्रतिद्वंद्वी समुदायों द्वारा किसी भी समुदाय के खिलाफ कीचड़ उछालना बंद करें। पीठ राहत और पुनर्वास के उपायों के अलावा हिंसा के मामलों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं सहित कई याचिकाओं पर दलीलें सुन रही थी। जब एक वकील ने कहा कि उसे भी अदालत के समक्ष कहने के लिए कई चीजें हैं तो पीठ ने टिप्पणी की, ”हम जनता की अदालत हैं और सुनवाई करना उपचार प्रक्रिया का हिस्सा है।” 

जब एक वकील ने कहा कि वकीलों को उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने से रोका जा रहा है तो पीठ ने कहा, ”यह तस्वीर का एक पहलू है। हम नहीं मानते कि मणिपुर उच्च न्यायालय काम नहीं कर रहा है।” पीठ ने मणिपुर उच्च न्यायालय बार के अध्यक्ष से पूछा, ”क्या किसी समुदाय के वकीलों को उच्च न्यायालय में पेश होने से रोका जा रहा है? बार अध्यक्ष ने कहा कि हर वकील को अदालत में आने की अनुमति है और वे शारीरिक रूप से या वर्चुअल मोड के माध्यम से पेश हो सकते हैं। पीठ ने कहा, “अगली बार, हमारे समक्ष नमूना आदेशों का संकलन पेश करें जिसमें यह संकेत दिया गया हो कि सभी समुदायों के वकील उच्च न्यायालय के समक्ष पेश हुए हैं।”

कोर्ट ने कहा, “हम संतुष्ट होना चाहते हैं। हमारी अंतरात्मा को संतुष्ट होना चाहिए कि बार के सदस्यों को रोका नहीं जा रहा है, चाहे उनका समुदाय कुछ भी हो।” केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि वकीलों को वहां उच्च न्यायालय में पेश होने से नहीं रोका जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत के मंच का इस्तेमाल कर के स्थिति को बिगाड़ने का जानबूझकर प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं हो। इसी तरह, हमारी अंतरात्मा को भी संतुष्ट होना चाहिए कि न्याय तक पहुंच में कोई बाधा नहीं है। मेहता ने मणिपुर के मुख्य सचिव द्वारा शीर्ष अदालत में दायर हलफनामे का हवाला दिया।

उन्होंने कहा कि हलफनामे के अनुसार, 30 अगस्त से 14 सितंबर के बीच उच्च न्यायालय की विभिन्न पीठों के समक्ष कुल 2,683 मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए गए और कई वर्चुअल सुनवाई लॉग-इन दर्ज किए गए। पीठ ने कहा कि मणिपुर राज्य के नौ न्यायिक जिलों में राज्य के सभी 16 जिले आते हैं। पीठ ने कहा कि यदि वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा पहले से उपलब्ध है तो उन्हें चालू किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बार का कोई सदस्य या वादी जो व्यक्तिगत रूप से डिजिटल मंच के माध्यम से उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने का इच्छुक है अदालत को संबोधित कर सके। पीठ ने कहा कि उसके आदेश की तारीख से एक सप्ताह की अवधि के भीतर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा शुरू की जाए।

पीठ ने कहा, ‘बार के सदस्य यह सुनिश्चित करेंगे कि अदालत को संबोधित करने वाले किसी भी वकील को अदालती कार्यवाही तक पहुंच से वंचित नहीं किया जाए।’ इसमें कहा गया है कि उसके आदेश के किसी भी उल्लंघन को अदालत के निर्देशों की अवमानना माना जाएगा। मणिपुर में मई में उच्च न्यायालय के उस आदेश को लेकर अराजकता और हिंसा भड़क उठी थी जिसमें राज्य सरकार को गैर-आदिवासी मेइतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया गया था। इस आदेश के कारण बड़े पैमाने पर जातीय संघर्ष हुए। राज्य में पहली बार तीन मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक 170 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों अन्य घायल हुए हैं। हिंसा की शुरुआत बहुसंख्यक मेइतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद हुई थी।

विस्थापितों को उनका आधार कार्ड मुहैया कराने के निर्देश 

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) और मणिपुर सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया कि राज्य में खूनी जातीय संघर्ष के कारण विस्थापित हुए लोगों को आधार कार्ड मुहैया कराए जाएं जिनके रिकॉर्ड यूआईडीएआई के पास पहले से ही उपलब्ध हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि मणिपुर में प्रशासन चलाने का उसका कोई इरादा नहीं है। कोर्अ ने कहा कि आधार कार्ड तेजी से जारी करने से पहले आवश्यक सत्यापन किया जाए।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि यूआईडीएआई के पास उन लोगों के बायोमेट्रिक विवरण होंगे, जिन्हें पहले ही आधार कार्ड जारी किए जा चुके हैं। ऐसे विस्थापित लोगों के अपने कार्ड के खोने के बारे में किए गए दावों का यूआईडीएआई मिलान करेगा। पीठ जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शमिल हैं ने मणिपुर के वित्त विभाग के सचिव को निर्देश दिया कि वह राज्य के प्रभावित हिस्सों में सभी बैंकों को उचित निर्देश जारी करें कि वे उन लोगों को बैंक खातों का विवरण उपलब्ध कराएं जिन्होंने दस्तावेज खो दिए हैं।

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