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![शीर्ष कोर्ट: 'आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना होगा वैकल्पिक', चुनाव आयोग ने इस कदम के बारे में दी जानकारी EC told Supreme Court Will make clarificatory changes in forms to say linking Aadhaar with voter ID optional](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2019/04/13/election-commission-of-india_1555145416.jpeg?w=414&dpr=1.0)
चुनाव आयोग (फाइल फोटो)
– फोटो : PTI
विस्तार
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने के संदर्भ में फॉर्म में ‘स्पष्टीकरणात्मक’ बदलाव करेगा। इससे मतदाताओं को पता चलेगा कि यह वैकल्पिक है। आयोग ने यह जवाब जी निरंजन द्वारा दायर जनहित याचिका पर दिया। शीर्ष अदालत ने जनहित याचिका पर 27 फरवरी को चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था।
इस याचिका में मतदाताओं के पंजीकरण (संशोधन) नियम, 2022 के नियम 26 बी में स्पष्टीकरण देने के संदर्भ में मांग की गई थी। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।
फॉर्म में ‘स्पष्टीकरणात्मक’ बदलाव किया जाएगा- चुनाव आयोग
चुनाव आयोग ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह मतदाता सूची में नये मतदाताओं को जोड़ने और पुराने मतदाताओं के रिकॉर्ड को अपडेट करने के लिए आधार नंबर की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए अपने फॉर्म में बदलाव करेगा। इसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि मतदाता पहचान पत्र के लिए आधार वैकल्पिक है।
इस दौरान, चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सुकुमार पट्टजोशी ने कहा कि मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में 66 करोड़ से अधिक आधार नंबर पहले ही अपलोड किए जा चुके हैं। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने दोहरी प्रविष्टियों को खत्म करने के लिए एक नया नियम बनाया था। इसमें आधार को मतदाता सूचियों से जोड़ने की बात कही गई थी।
डिफॉल्टर उधारकर्ता किसी भी समय बकाया चुकाकर गिरवी संपत्तियों की नीलामी प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली सेलिर एलएलपी की अपील पर फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि डिफॉल्टर उधारकर्ता किसी भी समय बकाया चुकाकर गिरवी संपत्तियों की नीलामी प्रक्रिया को विफल नहीं कर सकते।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने यह भी कहा कि अगर कोई उधारकर्ता एनपीए की वसूली को नियंत्रित करने वाले कानून के तहत नीलामी नोटिस के प्रकाशन से पहले वित्तीय संस्थानों को बकाया नहीं चुका पाता है तो ऐसे में वह अपनी गिरवी रखी संपत्ति को छुड़ाने की मांग नहीं कर सकता है।
पीठ ने कहा कि यह अदालतों का कर्तव्य है कि वे आयोजित किसी भी नीलामी प्रक्रिया की पवित्रता की रक्षा करें। अदालतों को नीलामी में हस्तक्षेप करने से गुरेज करना चाहिए। अन्यथा यह नीलामी के मूल उद्देश्य और उद्देश्य को विफल कर देगा और इसमें जनता के विश्वास और भागीदारी को बाधित करेगा।
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