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![सामूहिक हत्याकांड: मातहतों के कहे पर चले अफसर... हो गया कत्लेआम, आंखें मूंद भरोसा न करते तो जिंदा होते छह लोग Deoria Murder Case Officers continued to trust reports received from lower levels never check yourself](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/10/05/thavaraya-hatayakada_1696481399.jpeg?w=414&dpr=1.0)
फतेहपुर गांव में चप्पे-चप्पे पर तैनात पुलिस बल
– फोटो : अमर उजाला।
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समाधान दिवसों से लेकर आईजीआरएस तक सत्यप्रकाश दूबे की बार-बार शिकायतों पर अफसरों ने खुद संज्ञान लिया होता तो इतना बड़ा हत्याकांड होने से बच सकता था। फतेहपुर कांड के संबंध में शासन को भेजी गई रिपोर्ट में राजस्व कर्मियों और स्थानीय पुलिस की कई स्तर पर खामियां मिलीं हैं।
सामने आया है कि सभी शिकायतों का निस्तारण केवल कागज में ही कर रिपोर्ट अधिकारियों को सौंप दी गई। यहां तक कि पाबंद करने के बाद भी निजी मुचलका तक नहीं भरवाया गया, वहीं पुलिस ने चालानी रिपोर्ट में भी खानापूर्ति कर दी। एक रिपोर्ट में तो यह भी बताया गया है कि शांति भंग में चालान किया गया है, लेकिन यह बात गलत निकली है।
इस पूरे मामले में निचले स्तर के कर्मचारियों पर भरोसा कर अफसर भी फंसते नजर आ रहे हैं। फतेहपुर सामूहिक हत्याकांड के बाद राजस्व और पुलिस विभाग में व्यापक पैमाने पर हुई निलंबन और विभागीय कार्रवाई से अफरातफरी है। इस मामले में अधिकारियों को अपने मातहतों पर आंख मूंद कर विश्वास करना महंगा पड़ा।
अधिकांश अधिकारियों को आईजीआरएस के मामलों के निस्तारण में खामियां उजागर होने पर निलंबन की कार्रवाई झेलनी पड़ रही है। 25 दिसंबर 2022 को जनसुनवाई पोर्टल की शिकायत पर फर्जी रिपोर्ट लगाई है। इतना ही नहीं 60 दिन बाद चार मार्च को मौके पर कर्मचारियों को भेजा गया, जबकि मुख्यमंत्री से संदर्भित मामले जिले पर आने के बाद एसडीएम के माध्यम से जाते हैं और 15 दिन के भीतर ही निस्तारण कर दिया जाना चाहिए था।
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