Our Social Networks

इस फिल्म ने लगाया द्विअर्थी गीतकारों की दुकान पर ताला, चमक गई फिल्म से जुड़े हर सितारे की किस्मत

इस फिल्म ने लगाया द्विअर्थी गीतकारों की दुकान पर ताला, चमक गई फिल्म से जुड़े हर सितारे की किस्मत

[ad_1]


इन दिनों टेलीविजन से लेकर रेडियो और ओटीटी तक 90 के दशक की पृष्ठभूमि पर बन रही कहानियों का हल्ला है। रेडियो जॉकी जहां इसे दूरदर्शन और गली मोहल्ले में खेले जाने वाले खेलों से जोड़कर उस दौर के गाने सुना रहे हैं। तो छोटे परदे पर ‘ये उन दिनों की  बात है’ जैसे धारावाहिकों ने भी खूब शोहरत पाई। ओटीटी पर इस हफ्ते रिलीज होने जा रही वेब सीरीज ‘गन्स एंड गुलाब्स’ की भी ऐसी ही कुछ कहानी है। लव लेटर लिखना, टू इन वन में कैसेट लगाकर दिन रात गाने सुनना और ‘आशिकी’ में हर हद से गुजर जाने को बेताब रहना, ये सब उस दौर के युवाओं को अब भी याद है। और, साथ ही याद है इस सिलसिले की शुरुआत करने वाली फिल्म ‘आशिकी’।



अनुराधा पौडवाल ने बोया बीज

फिल्म ‘आशिकी’ बनने की भी दिलचस्प कहानी है। दरअसल टी सीरीज के संस्थापक गुलशन कुमार एक मशहूर गीतकार से गाने लिखवाने गए थे जिन्होंने उन्हें उन दिनों के प्रचलन के हिसाब से द्विअर्थी गाने सुना दिए। गुलशन कुमार के साथ मशहूर गायिका अनुराधा पौडवाल को भी इस पर बहुत गुस्सा आया। वह बताती हैं, ‘मैंने एक हफ्ते का समय मांगा और संगीतकार आनंद मिलिंद से संपर्क किया। उनको मैने बताया कि ऐसे ऐसे गाने हैं। उन्होंने तमाम सवाल किए। मैंने कहा कि न तो फिल्म तय है, न हीरो हीरोइन, बस गाने तय हैं। फिर मजरूह सुल्तानपुरी साहब आए। उन्होंने पहला गाना लिखा, ‘क्या करते थे सजना तुम मुझसे दूर रहके’। अगले 15 दिनों में हमने 10 गाने बना लिए। ये गैर फिल्मी गानों की कैसेट ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ रिलीज हुई तो हाथों हाथ बिक गई। फिर ‘जीना तेरी गली’ कैसेट तैयार हुआ। उसके बाद ‘फिर लहराया लाल दुपट्टा’ का। इन गानों को दूरदर्शन पर चलाने भर के लिए इन गानों को लेकर फटाफट फिल्में भी बनीं।’


महेश भट्ट को ऐसे मिला मौका

लेकिन, ‘आशिकी’ फटाफट बनी फिल्म नहीं है। अनुराधा पौडवाल बताती हैं, ‘नदीम श्रवण और हमने इस बीच 27 गाने बना लिए थे। मैंने सुझाव दिया कि इस बार ये गाने किसी बाकायदा बनी फिल्म में होने चाहिए। महेश भट्ट का नाम मैंने ही सुझाया और कहा कि वह बहुत अच्छे निर्देशक हैं, अगर वह चाहेंगे तो इसे सोना बना देंगे। महेश भट्ट गाने सुनकर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुलशनजी के साथ तीन फिल्में इन गानों को लेकर बनाईं। और, इस कड़ी की पहली फिल्म थी ‘आशिकी’।’


एक करोड़ से ऊपर बिके कैसेट

महज 26 साल की उम्र में पहली फिल्म ‘मंजिलें और भी हैं’ निर्देशित करने वाले महेश ने इसके बाद ‘लहू के दो रंग’, ‘अर्थ’, ‘जनम’ और ‘सारांश’ जैसी कई चर्चित फिल्में बनाईं। लेकिन, कमर्शियल सिनेमा में महेश भट्ट को कामयाबी मिली साल 1990 में 17 अगस्त को रिलीज हुई फिल्म ‘आशिकी’ से। ‘आशिकी’ रिलीज हुई तो सारे रिकॉर्ड एक तरफ और ‘आशिकी’ के बनाए रिकॉर्ड एक तरफ। फिल्म के गानों के कैसेटों की बिक्री जैसे जैसे आगे बढ़ती जाती। टी सीरीज इसे लेकर विज्ञापन निकालती जाती। फिर एक वक्त ऐसा भी आया कि इन कैसेट की बिक्री की तादाद एक करोड़ से ऊपर निकल गई। इसके बाद टी सीरीज ने भी इनकी गिनती के बारे में विज्ञापन बनाने बंद कर दिए। तब ‘आशिकी’ का संगीत टी सीरीज का नहीं देश का संगीत हो चुका था।


फिल्मफेयर के चारों म्यूजिक पुरस्कार

ये उन दिनों की बात है जब तक नदीम श्रवण का गुलशन कुमार से पंगा नहीं हुआ था। दोनों टी सीरीज के लिए लगातार काम भी कर रहे थे। फिल्म ने अगले साल फिल्मफेयर अवार्ड्स में भी तहलका मचाया। बेस्ट म्यूजिक, बेस्ट लिरिसिस्ट, बेस्ट प्लेबैक सिंगर- मेल, बेस्ट प्लेबैक सिंगर – फीमेल, यानी फिल्म संगीत से जुड़ी चारों कैटेगरी के पुरस्कार फिल्म ‘आशिकी’ ने जीत लिए। ये पुरस्कार क्रमश: मिले, नदीम-श्रवण, समीर, कुमार शानू और अनुराधा पौडवाल को। फिल्म ‘आशिकी’ के लिए कुल 12 गाने गुलशन कुमार ने निकालकर एक तरफ रखे थे। हालांकि, इनमें से फिल्म में प्रयोग नौ ही हुए। इनमें से एक गाना उदित नारायण ने और एक गाना नितिन मुकेश ने भी गाया। नितिन मुकेश का नाम भी फिल्म के एंड क्रेडिट्स में गायक के तौर पर आता है हालांकि उनका गाया गाना फिल्म में नहीं है।


[ad_2]

Source link

Facebook
Twitter
LinkedIn
Pinterest
Pocket
WhatsApp

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *