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Supreme Court: ‘आरोपी अगर भाषा नहीं समझता तो चार्जशीट अवैध नहीं’, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला

Supreme Court: ‘आरोपी अगर भाषा नहीं समझता तो चार्जशीट अवैध नहीं’, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला

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सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (सीआरपीसी) के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें यह बताया गया हो कि जांच एजेंसी अदालत की भाषा में ही आरोपपत्र दाखिल करेगी। सीआरपीसी की धारा 272 के तहत राज्य सरकार, हाईकोर्ट और अन्य निचली अदालतों की भाषा तय कर सकती है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने सीबीआई की याचिका पर यह आदेश दिया। बता दें कि सीबीआई ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस निर्देश को चुनौती दी थी, जिसमें हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी को व्यापम घोटाले के दो आरोपियों को हिंदी में आरोप पत्र उपलब्ध कराने को कहा था। 

सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत की भाषा में या जिस भाषा को अभियुक्त नहीं समझता, उन्हें छोड़कर किसी अन्य भाषा में दाखिल आरोपपत्र अवैध नहीं है, बशर्ते उसमें न्याय की विफलता नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 272 के तहत राज्य सरकार हाईकोर्ट और अन्य निचली अदालतों की भाषा तय कर सकती है लेकिन धारा 272 के तहत यह शक्ति नहीं है कि कि जांच एजेंसी या पुलिस की भाषा भी तय करे। सीआरपीसी की धारा 207 के तहत ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को आरोपियों को चार्जशीट और अन्य दस्तावेजों की कॉपियां उपलब्ध करानी होती हैं।

आरोपी को चार्जशीट की अनुवादित कॉपी दी जा सकती है…

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी उपलब्ध कराए गई चार्जशीट और अन्य दस्तावेज की भाषा नहीं समझता है तो उसे अदालत के सामने जल्द से जल्द आपत्ति दर्ज करानी चाहिए तो उसे अनुवादित दस्तावेज उपलब्ध कराए जा सकते हैं। साथ ही अगर आरोपी का वकील आरोपपत्र की भाषा को समझता है तो वह अपने मुवक्किल को इसे समझा सकता है और उस स्थिति में आरोपी को अनुवादित दस्तावेज उपलब्ध कराने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपपत्र की भाषा आरोपी नहीं समझता है तो भी यह अवैध नहीं है और इस आधार पर जमानत की मांग नहीं की जा सकती। 






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