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![Ghoshi By Election: घोसी में करारी हार के बाद ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान का क्या होगा? Ghosi by-election: What will happen to Omprakash Rajbhar and Dara Singh Chauhan after the crushing defeat?](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/08/27/mau_1693136195.jpeg?w=414&dpr=1.0)
दारा सिंह चौहान के साथ ओमप्रकाश राजभर
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
घोसी उपचुनाव के ऐसे नतीजे की कुछ शीर्ष भाजपा नेताओं ने कल्पना नहीं की थी। वहीं समाजवादी पार्टी के रणीनीतिकारों को इतनी ही बड़ी जीत मिलने की उम्मीद थी। यह उम्मीद पालने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश के करीबी संजय लाठर थे। सुधाकर सिंह जीत गए। दारा सिंह चौहान और सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर की कोशिशें काम नहीं आईं। कांग्रेस के प्रमोद तिवारी इसे इंडिया गठबंधन की जीत बताते हैं। लेकिन सियासी तौर पर इसे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या की रणनीतिक हार के तौर पर देखा जा रहा है।
लोकभवन के सूत्र बताते हैं कि उपचुनाव का मतदान होने से पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पता था कि दारा सिंह चौहान चुनाव हार जाएंगे। हारेंगे ही नहीं बल्कि बड़े अंतर से हारेंगे। इस तरह की संभावना को मान लेने में समाजवादी पार्टी के संजय लाठर को भी कोई संकोच नहीं है। बनारस के रहने वाले गाजीपुर मूल के भाजपा के एक बड़े नेता ने कहा कि दारा सिंह चौहान दल बदलू थे। उन्हें पता नहीं क्यों टिकट मिला। यह तो हमारे नेताओं का निर्णय था। दूसरे, ओम प्रकाश राजभर को भी न जाने क्यों एनडीए में लाया गया। सूत्र का कहना है कि वह चुके हुए नेता हैं। ऐसे में तो हारना ही था।
विधानसभा का सत्र, शिवपाल सिंह यादव और मुख्यमंत्री योगी की हंसी
कुछ ही समय पहले उ.प्र. विधानसभा सत्र के दौरान शिवपाल सिंह यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हंसते हुए एक सुझाव दिया था कि वह ओम प्रकाश राजभर को जल्द से जल्द मंत्रिमंडल में शामिल कर लें और अगर ऐसा नहीं करेंगे तो राजभर फिर हमारे साथ आ जाएंगे। इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी हंसी नहीं रोक पाए थे। राजनीति के सधे शिवपाल का यह तीर ठीक निशाने पर था। इसके मायने भी निकाले गए कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ओम प्रकाश राजभर के एनडीए में शामिल होने से खुश नहीं थे। बताते हैं कि एनडीए में ओम प्रकाश राजभर को लाने की जमीन उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने तैयार की थी। ओम प्रकाश राजभर कई बार उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक से भी मिल चुके थे। दारा सिंह चौहान को लेकर भी मुख्यमंत्री योगी की अपनी राय थी। लेकिन केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की निगाह राजनीतिक मैक्रोमैनेजमेंट पर थी जो अन्य पिछड़ा वर्ग, दलितों, गैर जाटव आदि को जोड़कर 2014 और 2017 जैसी राजनीतिक पृष्ठभूमि खड़ा करने पर केन्द्रित है। इसके सामानांतर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 2022 के चुनाव से पहले साथ छोड़ने और भला बुरा कहने वालों पर सीमित राय रख रहे थे।
अब क्या होगा ओम प्रकाश राजभर और दल बदलू दारा सिंह चौहान का?
ओम प्रकाश राजभर केन्द्रीय गृहमंंत्री अमित शाह से भेंट करने, अपनी बात रखने के बाद एनडीए में शामिल हुए थे। इसलिए उनके पास आश्वासन बड़ा है। लेकिन घोसी उपचुनाव ने उन्हें राजनीति के जनाधार में बहुत कमजोर साबित कर दिया है। ऐसे में उन्हें इस हार की कीमत चुकानी पड़ सकती है। दरअसल, दारा सिंह चौहान को पिछड़ी जाति का चेहरा माना जाता है। 90 के दशक में उन्होंने बसपा से राजनीति शुरू की थी। 1996 में बसपा ने राज्यसभा में भेजा था। कार्यकाल पूरा होने के पहले वह समाजवादी पार्टी में चले गए और 2000 में अगली राज्यसभा उन्हें मुलायम सिंह यादव के आशीर्वाद से मिल गई। राजनीति के मौसम विज्ञानी दारा ने 2007 का विधानसभा चुनाव आते आते बसपा का उभार देखा और फिर बसपाई हो गए। 2009 में बसपा ने घोसी सीट से टिकट दिया। जीत गए। लोकसभा सदस्य बन गए। 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी। अवसर अनुकूल था। भाजपा में आए और पिछड़ी जाति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। 2017 में विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़े, विधायक बने। योगी कैबिनेट में मंत्री बने। मन नहीं माना। 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़ी। तमाम आरोप लगाए। समाजवादी पार्टी में फिर शामिल हुए। घोसी से विधानसभा चुनाव लड़ा, जीते, विधायक बने। लेकिन सरकार भाजपा की बन गई। 2023 में मन फिर नहीं माना। समाजवादी पार्टी छोड़ दी। भाजपा में चले गए। उसी सीट पर घोसी का उपचुनाव हुआ और हार गए। दारा सिंह चौहान की तरह ही ओम प्रकाश राजभर ने भी जब चाहा राजनीतिक दल का साथ पकड़ा और जब चाहा सत्ता के करीब जाने के लिए पकड़ा।
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