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DUSU election
– फोटो : Agency
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दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव (DUSU Election) के लिए मतदान चल रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस और सभी कॉलेजों के लगभग 60 हजार से ज्यादा छात्र इसके लिए मतदान कर रहे हैं। छात्रों को अपने पक्ष में लुभाने के लिए एबीवीपी और एनएसयूआई दोनों प्रमुख दलों की ओर से हर स्तर पर प्रबंध किए गए हैं। इसमें पिज्जा-बर्गर पार्टी से लेकर खाने-पीने की हर व्यवस्था शामिल है। छात्र संगठनों का सबसे ज्यादा प्राथमिकता में यूनिवर्सिटी में पहली बार आए छात्र हैं, जो स्नातक प्रथम वर्ष में किसी कोर्स में एडमिशन लिए हुए हैं।
इस तरह छात्रों को अपनी ओर कर रहे आकर्षित
छात्रों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए छात्र नेताओं को भारी भरकम खर्च भी करना पड़ रहा है। सभी प्रमुख छात्र संगठनों ने अपने-अपने मतदाताओं के लिए विशेष इंतजाम कर रखे हैं। उनके खाने-पीने से लेकर वोटिंग सेंटर तक ले जाने की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही हैं। जब से चुनावी प्रक्रिया शुरू होती है, तभी से मुख्य संगठनों के छात्र नेताओं की ओर से अपने समर्थकों के लिए काफी धन खर्च किया जाता है। यह खर्च छात्रों को खाने-पिलाने से लेकर उनके मनोरंजन तक के लिए होता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक छात्र ने अमर उजाला को बताया कि अनेक छात्र अब कई कला संस्थाओं से जुड़ गए हैं। इन छात्रों से जुड़ी कई संस्थाएं अब नाटक कला के माध्यम से छात्रों को आकर्षित करने का काम करती हैं। इनके आयोजन के लिए काफी खर्च होता है, लेकिन सभी छात्र संगठन इनके लिए खर्च करते हैं।
नए छात्रों को आकर्षित करने के लिए प्ले कार्ड लेकर मेट्रो स्टेशन, वोटिंग स्टेशनों के बाहर और कॉलेजों के सामने खड़े होते हैं। इन सबके लिए भी काफी धन खर्च होता है। छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए एक प्रत्याशी की ओर से पांच हजार रुपये की सीमा तय है, लेकिन कहा जाता है कि अध्यक्ष पद के चुनाव में अपने प्रचार पर प्रत्याशी पचास लाख रुपये से एक करोड़ रुपये तक खर्च कर देते हैं।
मुख्य धारा की राजनीति में आने का टिकट मानते हैं छात्र नेता
दिल्ली विश्वविद्यालय में एक छात्र संगठन की ओर से चुनाव लड़ चुके एक छात्र नेता ने अमर उजाला को बताया कि छात्रसंघ के चुनाव में सक्रिय होने से मुख्य राजनीति में प्रवेश पाना आसान हो जाता है। पार्टी संगठनों में बाद में ऐसे कार्यकर्ताओं की विचारधारा के प्रति विश्वसनीयता को लेकर सबसे ज्यादा भरोसा किया जाता है। भाजपा के दिवंगत नेता अरुण जेटली तक छात्र राजनीति से ही गए थे। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रुचि और रागिनी नायक भी एनएसयूआई की राजनीति से ही गए थे। ऐसे में छात्रों को यह लगता है कि यदि वे छात्र राजनीति में सफल हो जाते हैं, तो मुख्यधारा की राजनीति में उनके पैर जमाने का रास्ता साफ हो जाता है।
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