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Rampur News: उपेक्षा की तपिश में कुंभला रही हॉकी खिलाड़ियों की नई पौध

Rampur News: उपेक्षा की तपिश में कुंभला रही हॉकी खिलाड़ियों की नई पौध

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रामपुर। राष्ट्रीय खेल हॉकी कभी रामपुर का गौरव था। यहां के कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलकर जिले का मान बढ़ाया, लेकिन उपेक्षा के चलते अब यहां युवा हॉकी खिलाड़ियों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। दो-दो एस्ट्रोटर्फ मैदान होने के बाद भी खिलाड़ी घास के मैदान में अभ्यास करने को मजबूर हैं। ऐसे में जब ये खिलाड़ी बड़ी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने जाते हैं तो वहां एस्ट्रोटर्फ में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाते। अगर यहां भी एस्ट्रोटर्फ के मैदानों पर खिलाड़ियों को अभ्यास करने को मिले तो ये जिले का नाम रोशन कर सकते हैं।1990 में ही पनवड़िया में नवाब जुल्फिकार अली एस्ट्रोटर्फ मैदान बन गया था। जिससे जिले के हॉकी खिलाड़ी यहां अभ्यास करते थे। एस्ट्रोटर्फ पर अभ्यास से उनका खेल काफी निखरने लगा। 1998 में यहां छात्रावास भी बन गया। इसके बाद बाहर से आकर भी खिलाड़ी यहां रुकने लगे और अभ्यास करने लगे। इस मैदान पर बड़े-बड़े हॉकी टूर्नामेंट होने लगे। धीरे-धीरे जिले के हॉकी खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे।

हालांकि, समय बदलते समय के साथ यह स्टेडियम खेल विभाग की उपेक्षाओं का शिकार हो गया। देखरेख के अभाव में एस्ट्रोटर्फ खराब हो गया। दर्शकदीर्घा भी जर्जर हो गई। जिसके बाद यहां खिलाड़ियों ने आना बंद कर दिया। 2013 में यहां पूरी तरह से अभ्यास बंद हो गया। छात्रावास में रह रहे 27 खिलाड़ी अब तीन किलोमीटर दूर शहीद-ए-आजम स्पोर्ट्स स्टेडियम में घास के मैदान में अभ्यास करने जाते हैं। हालांकि, अब इस स्टेडियम के जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ है।

वहीं 2015 में सींगनखेड़ा में बना एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम भी बंद पड़ा है। विवादों के चलते इस स्टेडियम को बंद कर दिया गया था। इसके चलते खिलाड़ी इस स्टेडियम का लाभ भी नहीं उठा पा रहे हैं। खास बात यह है कि खेल विभाग भी इस स्टेडियम को खुलवाने का प्रयास नहीं कर रहा है।

क्या कहते हैं वरिष्ठ खिलाड़ी

खिलाड़ियों के लिए सुविधाएं रामपुर में हमेशा से थीं, लेकिन पहले ध्यान दिया गया तो हम लोग इंटरनेशनल स्तर तक पहुंच गए। आज बच्चे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। इसका कारण अधिकारियों की उपेक्षा है। लखनऊ के बाद रामपुर में दो एस्ट्रोटर्फ थे, लेकिन कदर न होने की वजह से आज खिलाड़ी घासों में प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं। -मो. वकार, इंटरनेशनल हॉकी खिलाड़ी

एक एस्ट्रोटर्फ की लाइफ 10 साल की होती है। इसके साथ ही उसकी देखभाल नियमित करनी होती है। उपेक्षा के चलते दोनों एस्ट्रोटर्फ बर्बादी हो गईं। युवा खिलाड़ी एस्ट्रोटर्फ की बजाय घास के मैदान में अभ्यास करते हैं। ऐसे में वो जब किसी टूर्नामेंट में एस्ट्रोटर्फ वाले मैदान पर खेलते हैं तो उनके प्रदर्शन में कमी आ जाती है।

-मुख्तयार अली, इंटरनेशनल हॉकी खिलाड़ी

-क्या कहते हैं युवा खिलाड़ी

आज हमें खेलने के लिए तीन किलोमीटर दूर बमनपुरी स्टेडियम जाकर घास के मैदान में खेलना पड़ता है। ऐसा तब है जब हमारे यहां दो-दो एस्ट्रोटर्फ हैं। खेलों को बढ़ावा देने की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन खिलाड़ियों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं उपलब्ध कराई जा रही हैं।

-कंजा सिराज, हॉकी खिलाड़ी

जिले में एक भी ऐसा स्टेडियम नहीं है, जिसमें सभी सुविधाएं हों। हम घास के मैदान पर प्रैक्टिस करते हैं, लेकिन बाहर जाकर जब एस्ट्रोटर्फ पर खेलते हैं तो प्रदर्शन में कमी आती है। अगर अपने यहां एस्ट्रोटर्फ की सुविधा मिलनी शुरू हो जाए तो बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे।

-मो.मिरसाब, हॉकी खिलाड़ी

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