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Rampur Kartoos Kand: कारतूस कांड के पीछे कौन, अभी भी राज नहीं आ पाया बाहर, नार्को टेस्ट होता तो खुल जाते भेद

Rampur Kartoos Kand: कारतूस कांड के पीछे कौन, अभी भी राज नहीं आ पाया बाहर, नार्को टेस्ट होता तो खुल जाते भेद

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Who behind kartoos case, secrets have not been revealed yet, narco test done secrets would have been revealed

रामपुर स्थित सीआरपीएफ सेंटर
– फोटो : संवाद

विस्तार


रामपुर कारतूस कांड के पीछे कौन-कौन शामिल थे। यह राज बाहर नहीं आ सका। यदि दोषियों का यदि नार्को टेस्ट होता तो कई बड़े अफसरों के नाम भी सामने आ सकते थे। ट्रायल के दौरान आरोपियों ने अपने अधिवक्ताओं के जरिए नार्को टेस्ट के लिए पुलिस के प्रार्थनापत्र का विरोध कराया। 

2010 में कारतूस कांड के खुलासे के वक्त पुलिस ने आरोपियों से लंबी पूछताछ की थी, जिसमें वह पहले वह भ्रमित करते रहे। पुलिस ने सभी आरोपियों को जेल तो भेज दिया था,लेकिन पुलिस यह जानना चाहती थी कि इतने बड़े घोटाले के पीछे आखिर कौन है।

 

इस सवाल का जवाब जानने के लिए पुलिस ने सभी आरोपियों खासतौर से सीआरपीएफ के हवलदार विनोद,  विनेश और पीएसी के रिटायर्ड दरोगा यशोदानंदन का नार्को टेस्ट कराने का फैसला लिया था। उस वक्त के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक पुलिस ने नार्को टेस्ट के लिए कोर्ट में प्रार्थनापत्र दिया था।

 

पुलिस का मानना था कि इसके पीछे कहीं न कहीं सीआरपीएफ, यूपी पुलिस व पीएसी से जुड़े अफसर भी हो सकते हैं। नार्को टेस्ट के लिए प्रार्थना पत्र पर कोर्ट में सुनवाई हुई थी। सुनवाई के बाद आरोपियों ने नार्को टेस्ट कराने से इनकार कर दिया था।

 

जिसके बाद कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्था का हवाला देते हुए नार्को टेस्ट का प्रार्थनापत्र खारिज कर दिया था। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि यदि नार्को टेस्ट की मंजूरी मिल जाती तो कई अफसरों के राजफाश हो जाते।  

सीआरपीएफ के अफसरों ने नहीं किया था सहयोग 

रामपुर। कारतूस कांड के खुलासे के बाद सीआरपीएफ से जिस तरह के सहयोग की उम्मीद पुलिस को थी। यह उम्मीद पुलिस की नहीं पूरी हो सकी,जिस पर तत्कालीन रामपुर पुलिस अधीक्षक रमित शर्मा ने सीआरपीएफ के आला अफसरों को एक पत्र लिखकर शिकायत की थी साथ ही कई अफसरों को संदिग्ध मानते हुए कार्रवाई की संस्तुति की थी। 

जांच की जद में आए थे एक सहायक कमाडेंट

कारतूस कांड में सीआरपीएफ से जुड़े अफसरों पर कार्रवाई की संस्तुति किए जाने के बाद एक सहायक कमाडेंट के खिलाफ जांच भी हुई थी। फिलहाल उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर में है। 

अप्रैल 2010 में कारतूस कांड सामने आया था। उस वक्त मेरी तैनाती एसपी के रूप में रामपुर में थी।  मामले की तफ्तीश के लिए सिविल लाइंस थाने के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक रईसपाल सिंह की देखरेख में तीन सदस्यीय टीम बनाई और फिर चार्जशीट भी दाखिल की। केस में सुस्ती आने के बाद मैंने मुरादाबाद में आईजी रहते हुए इस मामले की स्टेटस रिपोर्ट तलब की, जिसके बाद मुकदमे में गति आई और अब यह केस अंजाम तक पहुंचा है। पुलिस ने इस केस को लेकर बहुत मेहनत की थी। पुलिस की टीम यूपी के साथ ही कई राज्यों  तक गई। इस केस में सभी दोषियों को सजा मिली है,जिससे न्याय व्यवस्था में लोगों का विश्वास और बढ़ेगा। -रमित शर्मा,  पुलिस कमिश्नर, प्रयागराज 

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