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इंसुलिन हार्मोन, रक्त में शर्करा (ग्लूकोज) की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करता है। इंसुलिन प्रतिरोध तब होता है जब, शरीर की कोशिकाएं इस हार्मोन के प्रति सामान्य रूप से प्रतिक्रिया नहीं करती हैं। इससे ग्लूकोज कोशिकाओं में आसानी से प्रवेश नहीं कर पाता और इसकी मात्रा खून में बढ़ने लगती है। यही कारण है कि इससे टाइप-2 डायबिटीज रोग होने का जोखिम बढ़ जाता है।
पर क्या आप जानते हैं कि इंसुलिन रेजिस्टेंस सिर्फ ब्लड शुगर बढ़ने और डायबिटीज के लिए ही समस्याकारक नहीं है, यह स्थिति शरीर में कई अन्य प्रकार की गंभीर बीमारियों को भी बढ़ाने वाली हो सकती हैं। डायबिटीज रोगियों में कई प्रकार की बीमारियों के बढ़ने का यही कारण होता है।
जब हमारे शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति बहुत अधिक प्रतिरोधी हो जाती हैं, तो इससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लेसेमिया कहा जाता है। डायबिटीज रोगियों में यह काफी आम है। पर अगर इसे कंट्रोल न किया जाए तो इसके कारण शरीर में और भी कई प्रकार की दिक्कतें बढ़ने लग जाती हैं।
ऐसे रोगियों में मोटापा, हृदय से संबंधित रोग, नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज ( एनएएफएलडी), मेटाबॉलिज्म से संबंधित दिक्कत और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) जैसी बीमारियों के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।
इंसुलिन प्रतिरोध की समस्या का सबसे बड़ा जोखिम मेटाबॉलिक सिंड्रोम के रूप में देखा जाता है, इसके कारण आपके पाचन गड़बड़ हो सकता है, कमर के आसपास अतिरिक्त फैट जमा होने-वजन बढ़ने की समस्या के अलावा यह हृदय रोग-स्ट्रोक के जोखिम को भी बढ़ा देती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पाया कि मेटाबोलिक सिंड्रोम की समस्या वाले लोगों में हृदय रोगों के गंभीर रूप लेने का जोखिम अधिक हो सकता है।
इंसुलिन प्रतिरोध की समस्या महिलाओं में कई प्रकार की दिक्कतों को बढ़ाने वाली मानी जाती है। ऐसे महिलाओं में मुंहासे, पीसीओएस और बांझपन का खतरा भी हो सकता है।
जॉन्स हॉपकिंस मेडिसिन की रिपोर्ट के मुताबिक पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के कारण प्रजनन और स्वस्थ बच्चे को जन्म देने में समस्याएं हो सकती हैं। यह समस्या मेनोपॉज की जटिलताओं और गर्भधारण में कई दिक्कतों का कारण बनती है।
डॉक्टर कहते हैं, इंसुलिन प्रतिरोध की समस्या को ठीक नहीं किया जा सकता है, जिन डायबिटीक लोगों में दवाओं से भी ये कंट्रोल नहीं हो पाता है उन्हें इंसुलिन इंजेक्शन की दिक्कत हो सकती है। हालांकि जीवनशैली में कुछ बदलाव करके इसे कंट्रोल करने के प्रयास जरूर किए जा सकते हैं।
- प्रतिदिन कम से कम 45 मिनट तक व्यायाम करें।
- अच्छी नींद लें और तनाव मुक्त रहें।
- वजन कंट्रोल रखें और पौष्टिक आहार लें।
- लाइफस्टाइल को ठीक रखकर इंसुलिन की गतिविधियों को कंट्रोल किया जा सकता है, पर फिर भी अगर ये कंट्रोल न हो तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
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