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![IMF: 2023 में भारत अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.1 प्रतिशत रह सकती है, आईएमएफ ने पूर्वानुमान में किया संशोधन IMF projects Indian economy to grow at 6.1 per cent in 2023](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2020/04/09/750x506/imf_1586448009.jpeg?w=414&dpr=1.0)
आईएमएफ
– फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
विस्तार
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने मंगलवार को 2023 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। यह अप्रैल में बताए गए अनुमान से 0.2 प्रतिशत ज्यादा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा कि मजबूत घरेलू निवेश के परिणामस्वरूप 2022 की चौथी तिमाही में उम्मीद से अधिक मजबूत वृद्धि दिखी।
वैश्विक विकास दर में भी सुधार का पूर्वानुमान
विश्व आर्थिक परिदृश्य के ताजा अपडेट में कहा गया है, “भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2023 में 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो अप्रैल के अनुमान की तुलना में 0.2 प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक वृद्धि 2022 में अनुमानित 3.5 प्रतिशत से गिरकर 2023 और 2024 में 3 प्रतिशत होने का अनुमान है। हालांकि 2023 के लिए वैश्विक वृद्धि का पूर्वानुमान अप्रैल 2023 में विश्व आर्थिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) में की गई भविष्यवाणी की तुलना में मामूली रूप से अधिक है। लेकिन यह ऐतिहासिक मानकों के आधार पर यह अब भी कमजोर बना हुआ है। मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए केंद्रीय बैंक की नीतिगत दरों में वृद्धि से आर्थिक गतिविधियों पर दबाव बना हुआ है।
आईएमएफ के अनुसार ग्लोबल इकोनॉमी में उथल-पुथल का जोखिम कम हुआ
आईएमएफ ने कहा कि अमेरिका में कर्ज सीमा विवाद के हालिया समाधान और इस साल की शुरुआत में अमेरिका और स्विस बैंकिंग में उथल-पुथल को रोकने के लिए अधिकारियों की कड़ी कार्रवाई ने वित्तीय क्षेत्र में उथल-पुथल के तत्काल जोखिम को कम कर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में मुद्रास्फीति उच्च बनी रह सकती है और यहां तक कि बढ़ सकती है। रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन में युद्ध की तीव्रता और प्रतिकूल मौसम के कारण मौद्रिक नीति और सख्त किया जा सकता है। आईएमएफ ने कहा कि उच्च और लगातार कोर मुद्रास्फीति वाली अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों को मुद्रास्फीति को कम करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप जारी रखना चाहिए।आईएमएफ ने कहा है, ”राजकोषीय घाटा और सरकारी कर्ज महामारी से पहले के स्तर से ऊपर है, ऐसे में मध्यम अवधि के विश्वसनीय राजकोषीय समेकन की जरूरत है ताकि बजटीय गुंजाइश बहाल की जा सके और कर्ज की स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।”
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