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![Article 370: 'अगर संविधान का उल्लंघन हुआ है तो समीक्षा का हक', सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान की टिप्पणी judicial review to only investigate violation of Constitution SC on Article 370 Abrogation](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/08/08/750x506/supreme-court_1691515278.jpeg?w=414&dpr=1.0)
सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 370 निरस्त करने में अगर कोई सांविधानिक उल्लंघन हुआ है, तो अदालत के पास इसकी समीक्षा का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि मामले में केंद्र सरकार के विवेक की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे से पूछा, क्या आप अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सरकार के फैसले की समझदारी की समीक्षा करने के लिए अदालत को आमंत्रित कर रहे हैं? आप कह रहे हैं कि सरकार के फैसले के आधार का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए कि अनुच्छेद 370 को जारी रखना राष्ट्रीय हित में नहीं था?
सीजेआई ने कहा, क्या आप फैसले को निरस्त करने के अंतर्निहित विवेक पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं? दवे ने कहा, विवेक का सवाल ही नहीं है। संविधान के साथ धोखाधड़ी की गई और राष्ट्रपति ने बिना किसी सामग्री के अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया। अगली सुनवाई 22 अगस्त को होगी।
दलील: केंद्र का हलफनामा विरोधाभासों का पुलिंदा
वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे : केंद्र सरकार का जवाबी हलफनामा विरोधाभासों का पुलिंदा है।
पीठ : क्या हमें वाकई उस हलफनामे पर मेहनत करने की जरूरत है? हमें सांविधानिक प्रावधान की व्याख्या करनी है, यह कैसे प्रासंगिक है?
दवे : राष्ट्रपति की कार्रवाई का कोई कारण उपलब्ध नहीं हैं, न ही हलफनामे में यह बताया गया है। 1947 के बाद से जम्मू-कश्मीर और केंद्र के बीच कोई कठिनाई नहीं थी। अनुच्छेद 370 को जारी रखा जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं का तर्क : राष्ट्रपति के पास नहीं है अनुच्छेद 370 निरस्त करने की शक्ति
दवे ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास नहीं है, केवल संविधान सभा (1957 में भंग) ही ऐसी शक्तियों का प्रयोग कर सकती थी। दवे ने कहा, यह अनुच्छेद अपना जीवन जी चुका है और अपना उद्देश्य हासिल कर चुका है। जम्मू-कश्मीर सरकार की सहमति के बिना अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं किया जा सकता था। उनका कहना था कि ‘राज्य सरकार’ को लोकतंत्र के संदर्भ में समझा जाना चाहिए और इसकी व्याख्या राज्यपाल की सर्वव्यापी शक्तियों का इस्तेमाल करने के रूप में नहीं की जा सकती है।
सीजेआई का सवाल…तो 1957 के बाद सांविधानिक आदेश का अवसर कहां था?
सीजेआई ने दवे से सवाल किया, यदि अनुच्छेद 370 ने अपना उद्देश्य प्राप्त कर लिया है तो 1957 के बाद सांविधानिक आदेश जारी करने का अवसर कहां था? लेकिन कम से कम सांविधानिक प्रथा इसे झुठलाती है, क्योंकि 1957 के बाद भी जम्मू-कश्मीर के संबंध में संविधान के प्रावधानों को संशोधित करने के आदेश जारी किए गए थे। जिसका अर्थ है कि 370 उसके बाद भी लागू रहा था। इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि अनुच्छेद 370 ने अपना उद्देश्य हासिल कर लिया है।
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