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![Article 370: 'उत्तर-पूर्वी राज्यों के विशेष प्रावधानों को छूने का इरादा नहीं'; सुप्रीम कोर्ट से केंद्र ने कहा No intention to touch special provisions related to North Eastern regions Centre govt says to Supreme Court](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/08/08/750x506/supreme-court_1691515278.jpeg?w=414&dpr=1.0)
सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर चल रही सुनवाई नौंवे दिन भी जारी रही। इस दौरान केंद्र सरकार ने शीर्ष कोर्ट को बताया कि देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में लागू संविधान के विशेष प्रावधानों के साथ छेड़छाड़ करने का उसका कोई इरादा नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र की तरफ से कहा कि जम्मू-कश्मीर के अस्थायी प्रावधान पर चर्चा में उत्तर पूर्वी राज्यों का कोई भी संदर्भ ‘आशंकित शरारत’ हो सकती है।
दरअसल, जब वकील मनीष तिवारी ने कहा कि ऐसी आशंकाएं हैं कि जिस तरह से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था, उसी तरह उत्तर पूर्वी राज्यों से संबंधित विशेष प्रावधानों को भी खत्म किया जा सकता है। इस पर तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष यह दलील दी। बता दें कि कांग्रेस नेता और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी, अरुणाचल प्रदेश के पूर्व विधायक पाडी रिचो का पक्ष रख रहे थे। उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह में हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कदम को उचित ठहराते हुए फिर से दोहराते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। मेहता ने कहा, हमें अनुच्छेद 370 जैसे अस्थायी प्रावधान और उत्तर पूर्व पर लागू होने वाले विशेष प्रावधानों के बीच अंतर को समझना चाहिए। केंद्र सरकार का विशेष प्रावधानों को छूने का कोई इरादा नहीं है। इसे लेकर कोई आशंका नहीं है और न ही कोई आशंका पैदा करने की जरूरत है।
बता दें कि मनीष तिवारी ने अपनी दलील की शुरुआत में ही संकेत दिया कि वह अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कारण उत्तर पूर्वी राज्यों पर पड़ने वाले प्रभाव पर तर्क रखेंगे। तिवारी ने तर्क दिया कि भारत की परिधि में थोड़ी सी भी ‘आशंका’ के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं और अदालत वर्तमान में मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रही है। उन्होंने कहा, अनुच्छेद 370, जो जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है और अनुच्छेद 371 (जो पूर्वोत्तर राज्यों पर लागू होता हैं), इस मामले में प्रासंगिक हो जाते हैं। तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 की व्याख्या संभवतः अन्य प्रावधानों को प्रभावित कर सकती है।
इस पर सॉलीसिटर जनरल ने कहा कि मुझे कुछ कहने के निर्देश मिला हैं। हमें बहुत जिम्मेदार होना होगा। हमें अस्थायी प्रावधान (अनुच्छेद 370) और पूर्वोत्तर समेत अन्य राज्यों में लागू विशेष प्रावधान के अंतर को समझने की जरूरत है। इस पर सीजेआई ने मनीष तिवारी से कहा, आपको धारा 370 पर कुछ नहीं कहना है, तो हम आपको क्यों सुनना चाहिए। सीजेआई ने कहा, हमें आशंकाओं में क्यों जाना चाहिए? जब केंद्र ने कहा है कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है, तो हमें इसकी आशंका क्यों होनी चाहिए? केंद्र सरकार के बयान से आशंकाएं दूर हो गई हैं। इसके बाद संविधान पीठ ने कहा, 0 विशेष प्रावधान को छूने का कोई इरादा नहीं है। इस मामले का संदर्भ अनुच्छेद 370 से है और इस प्रकार आवेदन और इस मामले में कोई समानता नहीं है। सॉलीसिटर जनरल का बयान इस संबंध में आशंकाओं को दूर करता है, लिहाजा इस आवेदन का निपटारा किया जाता है।
इस दौरान एक याचिकाकर्ता की तरफ से जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक के एक साक्षात्कार का हवाला दिया गया। याचिकाकर्ता की वकील नित्या रामकृष्णन ने कहा, इस साल अप्रैल में पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक ने कहा था कि उन्हें चार अगस्त, 2019 को केंद्र के फैसलों के बारे में कोई पूर्व जानकारी नहीं थी। रामकृष्णन ने साक्षात्कार का वह अंश पढ़ा जिसमें मालिक ने कहा था, ’मुझे कुछ भी पता नहीं था। मुझे सिर्फ एक दिन पहले गृह मंत्री ने फोन किया था और कहा था कि सत्यपाल मैं कल सुबह एक पत्र भेज रहा हूं, कृपया इसे कल 11 बजे से पहले एक समिति से पारित करवाएं और मुझे भेजें। सांविधानिक आदेश 272 के अनुसार, ‘जम्मू-कश्मीर सरकार’ का अर्थ ‘जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल’ माना जाता है।
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार की सहमति की आवश्यकता है। चूंकि उस तिथि पर कोई निर्वाचित सरकार नहीं थी, राज्यपाल की सहमति को राष्ट्रपति आदेश जारी करने के लिए सरकार की सहमति के रूप में लिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने सत्यपाल मलिक के साक्षात्कार पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए राज्यपाल की ओर से कोई प्रभावी सहमति नहीं दी गई थी। इस पर पीठ के सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल कौल ने कहा कि साक्षात्कार एक ‘पोस्ट-फैक्टो स्टेटमेंट’(कार्योत्तर) है। बृहस्पतिवार को पहले अटॉर्नी जनरल और उसके बाद सॉलीसिटर जनरल केंद्र सरकार का पक्ष रखेंगे।
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