[ad_1]
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, नए वैरिएंट की प्रकृति गंभीर रोगकारक नहीं है, हालांकि इसमें कुछ अतिरिक्त म्यूटेशन जरूर देखे गए है, जिसके कारण इसकी संक्रामकता को लेकर चिंता जताई जा रही है। प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि यह तेजी से लोगों में संक्रमण बढ़ाने का कारण हो सकता है।
यह ओमिक्रॉन वैरिएंट का ही एक उप-प्रकार है, ऐसे में इसके कारण गंभीर रोग और अस्पताल में भर्ती होने की आशंका कम है। आइए जानते हैं कि भारत में इसको लेकर किस प्रकार का जोखिम है?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने नए वैरिएंट के जोखिमों को लेकर आश्वासन दिया कि भारत को कोविड-19 के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। मंडाविया ने कहा कि सरकार नए वैरिएंट के खतरे को ध्यान में रखते हुए जीनोम सीक्वेंसिंग पर जोर दे रही है। देश में कोरोना संक्रमण का जोखिम तो कम है, पर संक्रमण की रोकथाम और बचाव को लेकर सभी लोगों को लगातार सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है।
अब तक ओमिक्रॉन के जितने सब-वैरिएंट्स सामने आए हैं, इसमें किसी के कारण भी गंभीर रोग का खतरा नहीं देखा गया है।
नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (एनटीएजीआई) के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. एन के अरोड़ा ने टीओआई को बताया कि भारत में ईजी.5 का पता मई-जून में चला था। इस सब-वैरिएंट के कारण देश में पिछले दो महीनों में संक्रमण के बढ़ने या फिर अस्पताल में भर्ती होने के मामलों में कोई बदलाव नहीं है। यही कारण है कि फिलहाल इसके लेकल लोगों को बहुत ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। कोरोना संक्रमण से बचाव के सामान्य उपायों को पालन करके संक्रमण से सुरक्षित रहा जा सकता है।
प्रारंभिक अध्ययनों की रिपोर्ट से पता चलता है कि अपने मूल XBB.1.9.2 की तुलना में इस नए वैरिएंट के स्पाइक में अतिरिक्त म्यूटेशन हैं। यह म्यूटेशन पहले के अन्य कोरोनोवायरस वैरिएंट में भी दिखाई दे चुका है। वैज्ञानिक निश्चित नहीं हैं कि यह वैरिएंट कौन सी नई समस्याएं पैदा करने वाला हो सकता है। दुनिया भर में रिपोर्ट किए गए लगभग 35% कोरोना वायरस वैरिंएंट्स में 465 म्यूटेशन मौजूद हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दुनिया के जिन देशों में कोरोना के इन नए वैरिएंट्स के कारण संक्रमण की स्थिति देखी गई है, उनमें गंभीर रोग का खतरा कम देखा जा रहा है। ज्यादा जोखिम सिर्फ उन्हीं लोगों में देखा जा रहा है जो या तो कोमोरबिडिटी के शिकार हैं या फिर इम्युनिटी सिस्टम काफी कमजोर है।
स्क्रिप्स ट्रांसलेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. एरिक टोपोल ने कहा, इस एक्सबीबी श्रृंखला में जो उदाहरण थे, उनकी तुलना में इसमें मूल रूप से कुछ अधिक प्रतिरक्षा बचाव वाले गुण देखे जा रहे हैं, यही कारण है कि दुनिया के कई देशों में इस संक्रमण के बढ़ने का खतरा अधिक हो सकता है।
————–
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
[ad_2]
Source link