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![Israel-Hamas War: इस्राइल-हमास की जंग पर सियासत कितनी जायज? जानें खबरों के खिलाड़ी में विश्लेषकों की राय israel hamas war impact on india bjp congress face to face on muslim vote bank lok sabha election](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/10/14/israel-hamas-war-khabron-ke-khiladi_1697275934.jpeg?w=414&dpr=1.0)
खबरों के खिलाड़ी
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
इस्राइल-हमास के बीच बीते एक हफ्ते से जंग जारी है। हमास के रॉकेट हमलों का इस्राइल मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। इस संघर्ष का असर भारत में भी देखा जा रहा है। इस्राइल से भारतीयों को लाने के लिए ऑपरेशन अजय चलाया जा रहा है। दूसरी ओर इस पर राजनीतिक बयानबाजी भी हो रही है। कांग्रेस की तरफ से पारित किए गए एक प्रस्ताव पर भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने हैं। वेस्ट बैंक के हालात से भारत में वोट बैंक की फिक्र तक इस पर कितनी सियासत हो रही है? इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए खबरों के खिलाड़ी की इस कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार राहुल महाजन, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, समीर चौगांवकर और प्रेम कुमार मौजूद रहे। आइए जानते हैं उनके विचार…
1. इस्राइल पर भारत और कांग्रेस के रुख को किस तरह देखते हैं?
राहुल महाजन: विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया कि भारत शांतिपूर्ण इस्राइल का पक्षधर है। भारत और इस्राइल के रिश्ते बीते कुछ वक्त में सुदृढ़ हुए हैं। वहीं, दूसरा बयान जो कांग्रेस की तरफ से आया, वह भारत की अब तक चली आ रही विदेश नीति को दर्शाता है।
पूर्णिमा त्रिपाठी: हमारे देश में एक बहुत की दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हम हर चीज को अपने हिसाब से देखने लगते हैं। हमास के अत्याचार पर राजनीति करना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
समीर चौगांवकर: इस्राइल और फलस्तीन का संघर्ष बहुत पुराना है। हालांकि, हमास और इस्राइल के बीच जो हो रहा है, उसमें फलस्तीन को मिलाना शायद गलत होगा। हमास ने जो किया है, वह आतंकी हमला है। हमास के हमले में फलस्तीन की भूमिका नहीं है। यह मामला मुस्लिमों से जुड़ा था। इस वजह से भारत में इस पर बयानबाजी होना स्वाभाविक था। सनातन के मुद्दे को भाजपा आने वाले चुनावों में उठाएगी, यह तय है। उसके बीच फलस्तीन के मामले में मुस्लिम नेताओं और विपक्षी पार्टियों के जिस तरह बयान आए हैं, उसका फायदा उठाने की भाजपा जरूर कोशिश करेगी।
प्रेम कुमार: इस मुद्दे पर नजरिया स्पष्ट होना चाहिए। कांग्रेस ने इस मामले में बचने की कोशिश की है, इसमें कोई शक नहीं है। आप हमास की निंदा कीजिए, लेकिन नजरिया साफ रखिए।
2. पी20 में प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम आतंकवाद की परिभाषा को तय नहीं कर पाए हैं। अगर इस्राइल की घटना को आतंकी हमले के तौर पर देख रहे हैं तो क्या राजनीति होने की गुंजाइश है?
विनोद अग्निहोत्री: प्रधानमंत्री ने जब कहा कि हम इस्राइल के साथ खड़े हैं तो यह स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी, लेकिन यह देखना होगा कि हम किस तरह इस्राइल के साथ खड़े हैं। हम हमास के हमले के विरोध में खड़े हैं या इस्राइल जो अब हमले कर रहा है, हम उसके साथ खड़े हैं। मोदी सरकार ने भी संयुक्त राष्ट्र में इस्राइल के प्रति अपनी नीति को जारी रखा। हमास को हमने कभी स्वीकार नहीं किया। हमारा दोस्त पीएलओ था, जिसके नेता यासेर अराफात थे। इस्लामिक देश शुरुआत में कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देते थे, लेकिन बाद वे न्यूट्रल होते गए। 1971 की जंग के बाद जब पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए और भारत के खिलाफ दुनिया में प्रतिबंधों की बात होने लगी तो यासेर अराफात भारत के साथ खड़े थे। यासेर अराफात को कमजोर करने के लिए हमास को खड़ा किया गया था। सवाल तो यह उठता है कि मोसाद को यह भनक क्यों नहीं लगी कि हमास इस तरह से हमला करने वाला है। अरब देशों के संबंध भारत से सुधर रहे हैं। दुनिया में जो भौगोलिक राजनीति बदल रही थी, उसी को तोड़ने के लिए यह सब हुआ है।
पूर्णिमा त्रिपाठी: दुनिया में कहीं भी मुसलमानों का मसला होता है तो हम भारत के मुसलमानों को क्यों शक की नजर से देखने लग जाते हैं। हमारे देश में समस्या की जड़ यही नजरिया है।
3. क्या राजनीतिक प्रतिक्रियाएं वोट बैंक को ध्यान में रखकर हो रही है?
राहुल महाजन: विदेश नीति को इससे अलग रखकर देखना चाहिए। 1977 का अटलजी का बयान देखिए। उस समय संदर्भ अलग था। उस समय भारत की नीति क्या थी, अब क्या है, यह देखना होगा। करगिल की जंग में हमारी किसने मदद की? इस्राइल ने की। हमारी रक्षा जरूरतों में इस्राइल की कितनी जरूरत है, यह भी देखना होगा।
समीर चौगांवकर: मुझे ऐसा नहीं लगता, लेकिन सनातन की जब बात उठेगी तो इसका सब अपनी-अपनी तरह से जिक्र करेंगे। सनातन की छत्री में ये सारे मुद्दे सामने उठते देखेंगे।
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