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![Israel War: इस्राइल के समर्थन से नहीं बिगड़ेंगे अरब देशों से रिश्ते, अपने रुख पर मजबूती के साथ खड़ा रहेगा भारत Relations with Arab countries will not affect due to support of Israel](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/10/08/israel-palestine-conflict_1696764913.jpeg?w=414&dpr=1.0)
Israel-Hamas Conflict
– फोटो : ANI
विस्तार
हमास के साथ जंग में इस्राइल का साथ देने के कारण न तो भारत के अरब देशों से रिश्ते खराब होंगे और न ही चीन के बीआरआई का जवाब मानी जा रही इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (आईएमईसी) परियोजना पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। भारत मानता है कि हमास के हमले को अब दुनिया आतंकवाद के रूप में देख रही है, इसके अलावा मुस्लिम राजनीति पर असर रखने वाली ताकतें अब इस्राइल व फलस्तीन के मामले में पहले जैसी तल्खी नहीं रखती।
नीतियों में बड़ा बदलाव ला रहे यह देश
सरकारी सूत्रों ने कहा कि हमास के साथ जंग में भारत ने बिना किसी की परवाह किए इस्राइल के साथ मजबूती से खड़े रहने की घोषणा की है। इस सुर में न तो नरमी आएगी और न ही भारत अपने रुख में भविष्य में कोई बदलाव करने जा रहा है। जहां तक इस कड़े रुख के कारण अरब देशों से रिश्ते खराब की संभावना की बात है तो ऐसा नहीं होने जा रहा। सरकारी सूत्र ने कहा कि इस मामले में अब तक ईरान और तुर्किये ही खुल कर फलस्तीन के पक्ष में हैं। खाड़ी देशों की मुख्य ताकत सऊदी अरब और यूएई ने अब तक बीच का रास्ता अपनाया है। दोनों देश अपनी नई वैश्विक पहचान बनाने के लिए अपनी नीतियों में बड़ा बदलाव ला रहे हैं। इसी रणनीति के कारण सऊदी अरब और इस्राइल करीब आ रहे हैं।
फलस्तीन ने नहीं दिया भारत का साथ
भारत ने लगातार चार दशक तक इस्राइल की कीमत पर लगातार फलस्तीन का साथ दिया। हालांकि फलस्तीन ने कश्मीर मुद्दे पर हमेशा पाकिस्तान का साथ दिया। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद पाकिस्तान के भारत के खिलाफ मुस्लिम देशों को एकजुट करनेे की मुहिम में भी फलस्तीन साथ था। जबकि इस्राइल हमेशा सभी मुद्दों पर भारत के साथ खड़ा रहा। वह आज भी भारत के साथ खड़ा है।
परिदृश्य बदलेंगे तो रिश्ते भी बदलेंगे
सरकारी सूत्र ने कहा कि जब भी वैश्विक ऑर्डर में बदलाव होते हैं, तब देश विशेष के साथ रिश्तों में भी बदलाव आते हैं। अस्सी के दशक तक अमेरिका इस्राइल के साथ खड़ा था, जबकि सोवियत संघ फलस्तीन के साथ। तब चूंकि भारत के अमेरिका की जगह सोवियत संघ से बेहतर रिश्ते थे, ऐसे में भारत के पास फलस्तीन के समर्थन के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था। सोवियत संघ के बिखराव के बाद वैश्विक ऑर्डर में बदलाव आया। इसके बार नरसिंहा राव सरकार ने पहली बार इस्राइल से कूटनीतिक रिश्ते जोड़े, जिसे वर्तमान सरकार ने नई ऊंचाई दी।
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