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Khabron Ke Khiladi: ‘चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं’; विश्लेषकों की राय

Khabron Ke Khiladi: ‘चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं’; विश्लेषकों की राय

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खबरों के खिलाड़ी।
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बीच केंद्र सरकार ने कई बिलों को सदन में रखा। उनमें से दो बड़े बिलों पर बात होनी जरूरी है। इनमें पहला है चुनाव आयोग के आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा बिल और दूसरा सीआरपीसी, आईपीसी से जुड़े बिल। खबरों के खिलाड़ी में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए हमारे साथ मौजूद रहे वरिष्ठ विश्लेषक प्रेम कुमार, अवधेश कुमार, पूर्णिमा त्रिपाठी, समीर चौंगावकर और संजय राणा। पढ़िए चर्चा के कुछ अहम अंश…

अवधेश कुमार

‘संसदीय लोकतंत्र में राजनीति सर्वोपरि है। सुप्रीम कोर्ट संविधान का अभिभावक है। देश के लिए कानून बनाने का काम संसद का है, सब विषयों पर संसद कानून बनाती है, लेकिन अगर वह नियुक्ति को लेकर कानून बनाएं तो उस पर सवाल उठने लगते हैं, यह गलत है। अंग्रेजों ने जो कानून बनाए, वे देश पर शासन करने के लिए बनाए गए थे। इंडियन पीनल कोड का उद्देश्य ही भारतीयों को दंडित करने के लिए था, अब उसका भारतीयकरण होने की दिशा में कदम उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट, विधायिका के क्षेत्र में दखल दे, मैं उसके बिल्कुल पक्ष में नहीं हूं। देश में राजनीतिक सुधार होने चाहिए न कि न्यायपालिका के दखल को बढ़ाना चाहिए।’

प्रेम कुमार

‘अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग तक कोई भी नीतिगत फैसले लेना गलत है और सरकार ने विधेयक लाकर इसका उल्लंघन किया है। बिल से लग रहा है कि सरकार बताना चाहती है कि हम जिसे चाहेंगे, वही चुनाव आयुक्त होगा। अदालत ने चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाए थे। ऐसे में सरकार का यह कदम घोर निंदनीय है। विधायिका और न्यायपालिका में टकराव की स्थिति है और इसे सैटल होने में लंबा समय लगेगा। न्यायपालिका का काम है यह देखना कि संविधान की मूल भावना के हिसाब से काम हो रहा है या नहीं? हाल के चुनावों को देखें तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि न्यायापालिका को नियुक्तियों से दूर रहना चाहिए।’ 






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