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सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : सोशल मीडिया
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत आरोपियों को गिरफ्तार करने और उनकी संपत्तियों को जब्त करने के अधिकार की समीक्षा करेगा। पिछले साल शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने अपने फैसले में ईडी को मिले इस अधिकार को बरकरार रखा था। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की विशेष पीठ ने पिछले साल के फैसले पर दोबारा विचार करने की मांग वाली याचिका स्वीकार कर ली।
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि 2022 का फैसला बहुत विचार-विमर्श के बाद दिया गया था और वर्तमान याचिकाओं के समूह में दिए गए सभी तर्क तब दर्ज किए गए थे। उन्होंने सवाल किया कि क्या तीन न्यायाधीशों की यह पीठ किसी अन्य समन्वय पीठ के फैसले की अपील पर सुनवाई कर सकती है। मेहता ने पूछा कि क्या कोई व्यक्ति कल यह याचिका लेकर आ सकता है कि वह समलैंगिक विवाह मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले से सहमत नहीं है और संदर्भ(रेफरेंस) या सुनवाई की मांग कर सकता है।
एफएटीएफ के मूल्यांकन तक इंतजार का अनुरोध
मेहता ने कहा कि पीएमएलए एक अकेला अपराध नहीं है और अन्य कानूनों के विपरीत, पीएमएलए वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा जारी निर्देशों के अनुरूप विधायिका की ओर से तैयार किया जाता है। उन्होंने कहा कि हर सदस्य देश ने अपने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी कानून तैयार कर लिए हैं। मेहता ने अदालत से एफएटीएफ द्वारा आपसी मूल्यांकन खत्म होने तक इंतजार करने को कहा।
ऐसे तो मुकदमेबाजी का अंत नहीं होगा
पीठ ने कहा कि अदालत प्रथम दृष्टया इस दलील से सहमत नहीं है और मामले से निपटेगी। मेहता ने कहा कि यह पीठ ऐसी कार्यवाहियों में इस पर दोबारा विचार नहीं कर सकती, अन्यथा मुकदमेबाजी का कोई अंत नहीं होगा। पीठ ने मेहता से कहा कि प्रथम दृष्टया उनका विचार है कि तीन-न्यायाधीशों की पीठ इससे निपट सकती है और इसमें कोई रोक नहीं हो सकती है। पीठ ने पूछा कि क्या यह पत्थर पर लिखा है कि एक पीठ दूसरी पीठ के फैसले पर गौर नहीं कर सकती है। पीठ ने कहा कि अदालत यह नहीं कह सकती कि वह कभी भी फैसले पर दोबारा विचार नहीं कर सकती।
पीएमएलए संविधान के अनुरूप नहीं : सिब्बल
याचिकाकर्ताओं में से एक की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अदालत ने कहा था कि पीएमएलए कोई दंडात्मक कानून नहीं है और यह उनकी पहली समस्या है। सिब्बल ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किसी को दोषी ठहराया जा सकता है और सजा दी जा सकती है लेकिन अदालत का कहना है कि यह एक नियामक कानून है। सिब्बल ने कहा कि जब किसी व्यक्ति को पीएमएलए के तहत समन किया जाता है तो उसे नहीं पता होता है कि उसे किस हैसियत से बुलाया जा रहा है, आरोपी के तौर पर या गवाह के तौर पर। उन्होंने कहा कि यह कानून संविधान के अनुरूप नहीं है। अदालत ने आगे की सुनवाई के लिए 22 नवंबर की तारीख तय की है।
2017 में कोर्ट ने धारा 45(1) को असांविधानिक ठहराया था
गौरतलब है कि नवंबर 2017 में, जस्टिस (सेवानिवृत्त) आर एफ नरीमन और जस्टिस कौल की पीठ ने पीएमएलए की धारा 45(1) को असंवैधानिक ठहराया था क्योंकि यह एक आरोपी को जमानत देने के लिए दो और शर्तें लगाती है। अदालत ने कहा था कि यह अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। वहीं विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ मामले में 27 जुलाई, 2022 के फैसले में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इसे खारिज कर दिया था।
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