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रामपुर। सूबे के चर्चित कारतूस कांड को भी सपा सरकार ने वापस लेने की कवायद की थी, लेकिन कोर्ट की आपत्ति के बाद शासन की इस मंशा को तगड़ा झटका लगा था। यदि यह केस वापस हो जाता तो आरोपियों को सजा नहीं मिल पाती।सिविल लाइंस क्षेत्र के राम रहीम पुल के पास एसटीएफ की टीम ने प्रयागराज निवासी पीएसी के रिटायर्ड दरोगा यशोदानंदन, सीआरपीएफ के हवलदार विनोद व विनेश को गिरफ्तार किया था। इसके बाद एसटीएफ ने जोरदार कार्रवाई करते हुए इस केस में काफी महत्वपूर्ण सुबूत एकत्र किए। 2010 में बसपा की सरकार थी, लेकिन जब यह केस तफ्तीश के बाद कोर्ट तक पहुंचा तो सपा की सरकार आ गई। समाजवादी पार्टी की सरकार ने वर्ष 2013 में इस केस को वापस लेने की कवायद शुरू की थी। उस वक्त तत्कालीन गृह सचिव आरएन श्रीवास्तव की ओर से जिला प्रशासन से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी थी।
जिला प्रशासन ने अभियोजन से रिपोर्ट तलब करते हुए पूछा था कि क्या यह केस वापस लिया जा सकता है, जिस पर अभियोजन ने अपनी आपत्ति जताई थी। साथ ही कोर्ट ने भी इस केस के ट्रायल पर आने की वजह बताते हुए इस केस को वापस लेने से इंकार कर दिया था। इसके बाद प्रशासन ने शासन को केस वापस न लेने का सुझाव देते हुए रिपोर्ट भेज दी थी। इसके बाद यह केस तब से लगातार कोर्ट में चलता रहा और अब इसका फैसला भी आ गया।
हाईकोर्ट ने दिए केस शीघ्र निस्तारण के आदेश
रामपुर। जमानत के लिए जब सभी आरोपी कोर्ट पहुंचे थे तब हाईकोर्ट ने जमानत तो मंजूर कर ली थी, लेकिन हाईकोर्ट ने स्थानीय कोर्ट को इस केस का शीघ्र निस्तारण करने के आदेश दिए थे। जिसके बाद इस केस की सुनवाई तेज हुई।
आईजी की सख्ती के बाद हरकत में आई थी रामपुर पुलिस
रामपुर। कारतूस कांड की पैरवी को लेकर कुछ समय तक स्थानीय पुलिस ने भी सुस्ती दिखाई थी। कई दफा केस की सुनवाई अभियोजन की ठीक पैरवी की वजह से नहीं हो पा रही थी। कुछ साल पहले जब रमित शर्मा मुरादाबाद के आईजी बने तब उन्होंने केस में धीमी पैरवी को लेकर रामपुर पुलिस से नाराजगी जाहिर की थी। साथ ही आईजी ने इस पर सख्ती दिखाते हुए पुलिस को इस मामले में पैरवी तेज करने के आदेश जारी किए थे। इसके बाद पुलिस ने पैरवी तेज कर दी थी।
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