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रामपुर। वर्दीधारियों ने किस तरह आयुध भंडार के साथ ही मालखानों में सेंधमारी कर कारतूस और हथियारों का घोटाला किया इसकी पूरी कहानी 85 पेजों के कोर्ट के फैसलों में दी गई है। बताया गया कि किस तरह वर्दीधारियों ने आम नागरिकों की मदद से कारतूस व हथियारों की सप्लाई नक्सलियों तक की। कारतूस कांड में शुक्रवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने 85 पेजों का फैसला सुनाया। इन पेजों में सभी गुनाहगारों की करतूत साफ-साफ लिखी है। 13 साल तक पुराने इस केस में अभियोजन की ओर से नौ गवाह बनाए गए थे,जिसमें पुलिस के ही सभी गवाह थे। एसटीएफ के इंसपेक्टर और मुकदमे के वादी आमोद कुमार सिंह के साथ ही तत्कालीन सिविल लाइंस थाने के इंसपेक्टर रईसपाल सिंह,एसआई देवकी नंदन, एसआई शबाबुल हसन विवेचक के तौर पर पेश हुए। हेड मोहर्रिर वीरेंद्र कुमार शर्मा ने गवाही दी। इसके अलावा एसटीएफ के राजकुमार, एसआई पवन कुमार गिरी, एडीजी जोन बरेली में तैनात इंसपेक्टर गीतेश कपिल, एसआई ध्यानपाल सिंह समेत नौ गवाहो के बयान दर्ज कराए गए,जबकि बचाव पक्ष की ओर से सीआरपीएफ के सहायक कमाडेंट जितेंद्र कुमार मिश्रा ने ही गवाही दी। इसके अलावा फैसले की कापी में कॉल डिटेल, बैंक खातों से ट्रांजिक्शन और आरोपियों से हुई बरामदगी का जिक्र किया गया है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय और हाईकोर्ट की विधि व्यवस्थाओं का भी जिक्र किया गया है। बचाव पक्ष और अभियोजन की दलीलें भी फैसले में उल्लेखित की गई हैं।
रमेश लोधी-मोहित सक्सेना
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