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रामपुर।
रजा लाइब्रेरी के 250वें स्थापना दिवस समारोह के दूसरे दिन रविवार रात शायरों की महफिल सजी। देर रात शुरु हुए मुशायरे के दौरान शायरों ने अपनी शायरी के जरिये लोगों को वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने अपने अंदाज में मौजूदा हालातों पर भी अपनी शायरी के जरिये समां बांधा। शकील आजमी ने अपने शायरी से महफिल लूट ली।
किलास्थित मैदान में रवि सिंफनी बैंड से जुड़े कलाकारों की प्रस्तुति के बाद रात करीब साढ़े 10 बजे मुशायरे की शुरुआत हुई। इसके बाद शायरों ने अपनी शायरी के जरिये समां बांधना शुरू कर दिया। मुशायरे की अध्यक्षता अजहर इनायती व निजामत मंसूर उसमानी ने किया।
शायरी के सफर में मदन मोहन दानिश ने सुनाया खामोशी को मेरी दुआ समझो, और जो बोल दूं हुआ समझो। इसके बाद मनीष शुक्ला ने भी अपनी शायरी के जरिये लोगों को बांधे रखा। मनीष शुक्ला ने कहा बात करने का हंसीं तौर तरीका सीखा, हमने उर्दू के बहाने से सलीका सीखा। इसके बाद अभिनव अभिन्न ने सुनाया, ठहरा रहा मैं और जमाना सफर में था, सब छूटता रहा वो जो मेरी नजर में था।
मुशायरे की निजामत करते हुए मंसूर उसमानी ने कहा, एक बोझ है दिल पर जो उठा नहीं सकता ,क्या बोझ है दिल पर ये बता नहीं सकता। इसके बाद हास्य कवि पापुलर मेरठी ने कहा: अजब नहीं ये तुमगा भी, तीर हो जाए फटे जो दूध तो पनीर हो जाए। मवालियों को न देखा करो हिमाकत से, न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए। देर रात तक चले मुशायरे के दौरान लोग कुर्सियों से चिपके रहे। इस मौके पर विधायक आकाश सक्सेना, डीएम रविंद्र कुमार मांदड़ व अन्य अधिकारी मौजूद रहे।
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