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58 वर्षीय रोगी लॉरेंस फॉसेट में किए गए इस हार्ट ट्रांसप्लांटेशन को लेकर डॉक्टर्स की टीम काफी आशान्वित है, उन्हें उम्मीद है कि जानवर का दिल इंसानों में भी बेहतर तरीके से काम करेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूनाइटेड स्टेट्स की यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के विशेषज्ञों ने रोगी में आनुवंशिक रूप से संशोधित सुअर का हृदय प्रत्यारोपित किया है, सर्जरी के बाद रोगी की स्थिति स्थिर बनी हुई है, फिलहाल उसमें किसी प्रकार की जटिलता नहीं है। डॉक्टर्स को उम्मीद है कि सुअर का मोडिफाइड हृदय इंसानों में भी बेहतर तरीके से काम करेगा। आइए जानते हैं कि जानवरों का हृदय इंसानों में किस प्रकार से काम करता है?
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर ने शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में बताया, सर्जनों ने आनुवंशिक रूप से परिवर्तित सुअर के दिल को हृदय रोग से पीड़ित एक व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया है, जिसके इलाज की कोई अन्य उम्मीद नहीं थी।
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि जानवरों के हार्ट को इंसानों में लगाने का ये दूसरा मामला है। इससे पहले 57 वर्षीय व्यक्ति को भी सुअर का हार्ट लगाया गया था, हालांकि दो महीने बाद ही उसकी मौत हो गई थी। इस दूसरे मामले में डॉक्टरों का कहना है कि इस बार हमें बेहतर उम्मीद है, अब तक की स्थिति काफी आशाजनक बनी हुई है।
हालिया मामले में रोगी लॉरेंस फॉसेट में भी सुअर का हार्ट ट्रांसप्लांट मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉ. बार्टली ग्रिफ़िथ ने ही किया है, जिन्होंने पहले रोगी में ट्रांसप्लांटेशन किया था। पहले मामले में प्रत्यारोपण के बाद कई जटिलताओं, सुअरों को संक्रमित करने वाले वायरस के संक्रमण के कारण रोगी की मौत हो गई थी।
डॉ. बार्टली कहते हैं, दूसरी बार इस मामले में सभी आवश्यक सावधानियां बरती गई हैं, हमें उम्मीद है कि इस बार संक्रमण या फिर किसी तरह की जटिलता नहीं आएगी। सर्जरी के बाद लॉरेंस की स्थिति काफी अच्छी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लॉरेंस, लाइलाज हृदय रोग के शिकार थे, इसके अलावा उनमें कई अन्य जटिल चिकित्सा स्थितियां भी थीं, जिसके इलाज के लिए हार्ट ट्रांसप्लांटेशन ही एक मात्र तरीका था।
यहां गौर करने वाली बात ये है कि हाल के वर्षों में, जेनोट्रांसप्लांटेशन विज्ञान ने जीन एडिटिंग और क्लोनिंग तकनीकों के साथ बड़ी प्रगति की है, जिसके माध्य्यम से जानवरों के अंगों को इस तरह से मोडिफाइड किया जा रहा है जिससे मानव प्रतिरक्षा प्रणाली उसे बिना किसी अतिरिक्त प्रतिक्रिया के स्वीकार कर ले। हालांकि ये प्रयास अभी शुरुआती चरणों में है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तकनीक में सफलता के बाद एक लाख से अधिक अमेरिकियों को जीने के लिए नई उम्मीद मिलेगी जिन्हें ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है।
अधिकांश मामलों में रोगियों को किडनी की आवश्यकता होती है, लेकिन हर साल 25,000 से भी कम किडनी प्रत्यारोपण किए जाते हैं और हजारों लोग प्रतीक्षा सूची में ही जान गंवाने को मजबूर हैं।
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स्रोत और संदर्भ
Genetically Modified Pig’s Heart Is Transplanted Into a Second Patient
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