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![वाह क्या बात है!: 58 की उम्र में गजब की फुर्ती, दधिबल चौहान रोजाना 24 किमी दौड़कर जाते हैं ड्यूटी,गजब का जज्बा Dadhibal Chauhan runs 24 km every day to go to office Participated in Australia's World Championship](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/10/10/raja-24-kama-thaugdhakara-oifasa-jata-ha-thathhabl-cahana_1696915528.jpeg?w=414&dpr=1.0)
रोज 24 किमी दौड़कर ऑफिस जाते हैं दधिबल चौहान
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
‘पंख से कुछ नहीं होता, हौंसलों से ही उड़ान होती है।’ इन पंक्तियों को अक्षरश: सत्य साबित किया है शहाबगंज के केराडीह निवासी दधिबल सिंह चौहान ने। 58 की उम्र में जहां लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं, वहीं दधिबल इस उम्र में रोजाना 24 किलोमीटर दौड़कर अपने ऑफिस में काम के लिए जाते और आते हैं। दौड़ के नियमित अभ्यास और पैसे की बचत के लिए उन्होंने यह प्लान बनाया है। सेना में हवलदार के पद से सेवानिवृत दधिबल सेना में एथलिट के कोच भी रहे। अभी भी लगातार मास्टर गेम में प्रतिभाग करते हैं और 22 से ज्यादा मेडल जीत चुके हैं। जिसमें 13 गोल्ड मेडल हैं।
चंदौली के शहाबगंज विकासखंड के केराडीह गांव निवासी स्व. राधेश्याम सिंह और चंपा देवी के पुत्र दधिबल सिंह चौहान ने रामनगर की प्रभुनारायण इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट किया है। 19 मार्च 1987 को वे भारतीय सेना में भर्ती हुए। सेना में एथलिट कोच रहे और हवलदार के पद से 01 मई 2008 को सेवानिवृत हुए। इसके बाद रामनगर के भीटी गांव में घर बनवाकर परिवार के साथ रहने लगे। परिवार में पत्नी कनक देवी के अलावा दो पुत्र यदुवंश सिंह और रघुवंश सिंह हैं। दधिबल ने बताया कि बड़ा पुत्र यदुवंश सिंह चौहान मानसिक रूप से बीमार रहता है। जिसके इलाज में हर महीने हजारों रुपये खर्च होते हैं। छोटे बेटा रघुवंश अपनी पत्नी के साथ अलग रहता है।
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बड़े बेटे के इलाज में पेंशन के पैसे खर्च हो जाने से परेशान दधिबल ने पहले बीएचयू में गार्ड की नौकरी की। अभ्यास और पैसे की बचत के लिए रामनगर से बीएचयू ड्यूटी करने दौड़कर ही जाया करते थे। कोविड काल में डॉक्टरों की लापरवाही से एक मरीज भाग गया और ठीकरा इन पर फूटा। नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद 2022 में दधिबल ने महमूरगंज स्थित एक हॉस्पिटल में गार्ड की नौकरी शुरू की। रामनगर स्थित उनके घर से हॉस्पिटल की दूरी 12 किलोमीटर है लेकिन उन्होंने अभ्यास नहीं छोड़ा और आज भी रोजाना दौड़कर ही ड्यूटी जाते और आते हैं। इससे उनकी दौड़ की प्रैक्टिस भी हो जाती है और किराया का करीब 150 रुपये बच जाते हैं। इतनी दूरी तक इस उम्र में कैसे दौड़ लेते हैं के सवाल पर कहा कि ””चलता हुआ आदमी और दौड़ता हुआ घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता’।
नौकरी के साथ ही दधिबल राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित कई मास्टर गेम में प्रतिभाग करते हैं। अमूमन हर प्रतियोगिता में मेडल लाते हैं। सेवानिवृत होने 15 सालों में उन्होंने विश्व चैपिंयनशिप से लेकर कई मास्टर गेम में 22 मेडल जीते हैं। जिनमें 13 गोल्ड, तीन सिल्वर और छह ब्रांच मेडल है।
नेता-अधिकारी किसी ने नहीं की मदद, लोन लेकर आस्ट्रेलिया के विश्व चैंपियनशिप में लिया भाग
दधिबल सिंह चौहान ने बताया कि मैं इस उम्र में भी जिला और देश के लिए मेडल ला सकता हूं पर मेरे पास पैसे नहीं और न ही कोई मेरी मदद करने वाला है। यह कहते हुए उनके आंखों में आंसू आ गए। कहा कि 10-13 मार्च तक आष्ट्रेलिया के सिडनी में हुए विश्व चैंपियनशिप में मेरा चयन हो गया। लेकिन जाने आने का खर्च दो लाख रुपये लग रहा था। मेरे पास इतने पैसे न थे। मदद के लिए मैंने चंदौली जिलाधिकारी, वाराणसी जिलाधिकारी, सभी विधायकों, सांसदों के यहां जाकर कई बार गुहार लगाया पर सभी ने फंड न होने का रोना रोया। किसी ने मदद नही की तो बैंक से दो लाख रुपये लोन लेकर सिडनी गया। वहां डेढ किमी और पांच किमी रेसवॉक में गोल्ड और पो वॉर्ड में सिल्वर मेडल जीता। लेकिन अब लोन की किस्त अब नहीं भर पा रही है। अभी दुबई में चल रहे मास्टर गेम में भी सेलेक्शन हुआ था पर खर्च 90 हजार रुपये लग रहे थे। इसलिए नहीं जा सका।
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